Tuesday 15 August 2017

129 - बनीरोत राठौड़

बनीरोत राठौड़ 
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खापे - बनीरोत राठौड़ 

बनीरोत राठौड़ - बाघजी के पुत्र बणीरजी के ग्यारह पुत्र थे ये ग्यारह  पुत्र और इनके वंसज बनीरोत राठौड़ की कहलाये हैं। बणीरजी; राव कांधलजी के पोते और राव रिड़मालजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।ठिकाने गांव चाचिवाद, मेलूसर व धान्धू बाघजी के अधिकार में थे। राव बणीरजी, अपने दादाजी राव कांधलजी की मौत के बाद रावतसर  के दूसरे रावत बनें, लेकिन उनके चाचा रावत लखदीरसिंह ने उन से रावतसर की गद्दी हड़प ली और राव बणीरजी को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया, बाद में राव बणीरजी ने सम्वत  1500 के आसपास घांघू ठिकाने की स्थापना की।
[रियासत का जो मुख्य राजा राज करता था वो दूसरे किसी को भी चिट्ठी लिखकर गाँव या जमीन का लिखित मेँ पट्टा देता था वो ताजीमी ठाकुर व उसका ठिकाना ताजीम कहलाता था। जिनको मुख्य राजा या राज से चिट्ठी-पट्टे दिये गये वे टिकाई ठाकुरोँ मेँ गिने जाने लगे तथा एक गाँव मेँ जितनी चिट्ठीयाँ-पट्टे दिये गये वे ठाकुर परिवार अपने-अपने गाँव या अपने हिस्से कि जमीन के टीकाई ठाकुर कहलाने लगे और टीकाई के अलावा अन्य जो ठाकुर थे वे छुटभाई कहलाते थे। इस प्रकार रियासत मेँ सरदारों की तीन श्रेणियाँ होती थी।
01 - ताजीमी
02 - टीकाई चिट्ठीदार
03 - छुटभाई 
उपरोक्त तीनोँ मिलकर एक रियासत कहलाती थी। 
काँधल जी के बङे लङके बाघसिंह जी अपने पिता का बैर लेते हुये मारे गये थे। बाघसिंह जी के बङे लङके बणीरजी की बाल अवस्था होने के कारण काँधल जी कि पाग और "रावताई" की पदवी दोनों राजसिँह को मिली थी। कुल चार मुख्य ठिकानों मेँ से राव काँधल जी के वंश मेँ रावतसर के रावतोत, चुरू के बणीरोत, भादरा के साँईदासोत तीन ठिकाने कायम हुये। रावतसर के रावत तो राज्य के "सरायत" सरदारों मेँ थे मगर काँधलोँ के ठिकानों कि गणना तो बीकानेर राज्य के प्रमुख ठिकानों मेँ रही है। काँधलोँ के पट्टोँ के गाँवो कि स्थिति व संख्या मेँ बहुत उतार चढाव हुवा क्योकि 1657 ई. से 1668 ई. के बीच बिकोँ के पट्टोँ मेँ 5 प्रतिशत कि बढोतरी हो गयी थी। चूरू को चुहरू नाम के कालेर जाट ने बसाया था। जिस स्थान पर ये आकर बसे वह आज भी कालेरा बास के नाम से जाना जाता है। मालदेव जी के चुरू आने से पहले चुरू नाम गाँव बास कालेरा था। जो कस्वाँ जाटोँ के अधिन था। महाराजा जैतसिँह जी के रजवाङे से संवत 1596 मेँ मालदेव जी ने अपने अधिन कर चुरू नाम दिया। राव काँधल जी का पूत्र बाघसिंह हुवा तब तक सात ठिकाने थे व बणीर जी तक सात हि ठिकाने रहे। बणीर जी के वंशज बणीरोत कहलाये व मालदेव जी ने हि चुरू ठिकाना बाँधा जो ताजीम इनायत हुयी यानी मुख्य ठिकाना चुरू बना व ईन सभी चुरू के भाईयोँ के 39 रेख तथा 32 गाँव थे । चुरू ताजीम मेँ कुल 84 गाँव थे जो चुरू कि चौरासी बाजते थे (बोल चाल कि भाषा मेँ चुरू की चौरासी या चौरासी आळी रेख से सम्बोधन करते थे ठिकाणो चुरू पट्टा 84 गाँव कि चाकरी असवार रेख 84) ]
पीढ़ी 01 - बाघजी -राव कांधलजी के पुत्र बाघजी के तीन पुत्र थे -:
01 – बणीरजी - बाघजी के पुत्र बणीरजी को ठिकाना गांव चाचिवाद मिला था। बणीरजी के वंशज बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं।
02 - नारायणदासजी - बाघजी के पुत्र नारायणदासजी को ठिकानागांव धमोरा व ओटू [हरियाणा में] मिला था।
03 - रायमलजी - बाघजी के पुत्र रायमलजी को ठिकाना गांव उडमाना (रोहतक) मिला था।
पीढ़ी 02 - बणीरजी - जब राव कांधल जी छत्तरियांवाली में काम आये, अपने पिता की मौत का बैर लेते हुए बाघ जी थोड़े ही महीने बाद झांसल के युद्ध में काम आये । बणीर जी छोटे थे और अकेले भी, उन्होंने पहले मेलूसर पर अपना कब्ज़ा किया और वहां तालाब भी बनवाया। फिर उन्होंने अपना ठिकाना घांघू में बाँधा। उनके बाद बणीरोतों के तीन बड़े ठिकाने कायम हुए –1.चुरू -मालदेवजी, 2.घांघू - अचलदासजी,3.घंटेल - महेशदासजी चुरू के ठाकुर कुशलसिंह के वक्त से चुरू का प्रभाव ज़्यादा हुआ और बाकी बणीरोत ठिकाने उनके नीचे आगए। बाद में चुरू और भादरा के साथ घांघू भी खालसा हो गया। बीकानेर और अंग्रेजी सेना का एक तरफ से आक्रमण और शेखावतों का दूसरी तरफ से आक्रमण बणीरोतों के लिए बहुत भारी पड़ गया। खालसा के बाद ठिकाना सिर्फ तीन गाँव का रह गया [लाखाउ पहले ही अलग हो गया था)। खालसा के बाद बणीरोतों के [57 गाँवों] के पट्टे यह थे -:
     01 - कुचेरा [चुरु वाला]
     02 - घांघू [3 गाँव]
     03 - देपालसर [8 गाँव]
     04 - झरिया [8गाँव]
     05 - सात्यूं [8 गाँव]
     06 - लोहसना [7 गाँव]
     07 - अन्य [23 गाँव]

लूणकरणजी द्वारा ददरेवा पर अधिकार के समय बणीरजी लूणकरणजी की सेना में शामिल थे। जैसलमेर पर जब लूणकरणजी ने चढ़ाई की तब भी बणीरजी लूणकरणजी के साथ में थे। बीकानेर के महाराजा जैतसिंह जी के समय वि.सं.1791 में कामरान ने जब बीकानेर पर चढ़ाई की तब उसे हटाने में बणीरजी का पूरा सहयोग था। जयमल मेड़तिया की राव कल्याणमल ने मालदेव के विरुद्ध सहायता की तब भी बणीर जी बीकानेर की सेना के साथ थे।
बाघजी के पुत्र बणीरजी के ग्यारह पुत्र थे :-
01 - मेघराजजी - बणीरजी के पुत्र मेघराजजी को ठिकाना गांव ऊंटवालिया मिला था।
02 - मेकर्णजी - बणीरजी के पुत्र मेकर्णजी को ठिकाना गांव कानसर मिला था।
03 - मेदजी - बणीरजी के पुत्र मेदजी को ठिकाना गांव सिरियासर मिला था।
04 - कल्लाजी - ठिकाना गांव सिरियासर
05 - रूपजी - चूरू पर ही रहे।
06 - हरदासजी -
07 - हमीरजी - चूरू पर ही रहे।
08 - मालदेवजी - बणीरजी के पुत्र मालदेवजी को ठिकाना गांव चुरू मिला था।
09 - अचलदासजी - बणीरजी के पुत्र अचलदासजी को ठिकाना गांव घांघूव लाखाऊ मिला था।
10 - महेशदासजी - बणीरजी के पुत्र महेशदासजी को ठिकाना गांव घन्टेल व कडवासर मिला था।
11 - जेतसी - बणीरजी के पुत्र जेतसी को ठिकाना गांव घंटेल [तहसील व जिला चूरू,राजस्थान {भारत}] मिला था।
पीढ़ी 03 - मालदेवजी - बणीरजी के पुत्र मालदेवजी को ठिकाना गांव चुरू मिला था। इनके पांच पुत्र थे -:
01 - रामचन्द्रजी - मालदेवजी के पुत्र रामचन्द्रजी को ठिकाना गांव बीनासर मिला था।
02 - सांवल दासजी - मालदेवजी के पुत्र सांवल दासजी को ठिकाना गांव चूरू मिला था।
03 - नरहरिदासजी[नर्सिदास] - ठिकाना चुरू, मालदेवजी के पुत्र ।
04 - दूदाजी - ठिकाना चुरू, मालदेवजी के पुत्र।
05 - महताबजी 
मालदेवजी के तीन पुत्र नरहरिदासजी[नर्सिदास] ,दूदाजी, महताबजी ये बीकानेर के राजा रामसिंह द्वारा मारे गए।
पीढ़ी 04 - सांवल दासजी - मालदेवजी के पुत्र सांवल दासजी 6 पुत्र थे :-
01 - बलभद्रजी - सांवल दासजी के पुत्र बलभद्रजी को ठिकाना गांव चूरू मिला था। बलभद्रजी के एक हुवा भीमसिह ।
02 - चतुर्भुजजी - सांवल दासजी के पुत्र चतुर्भुजजी चूरू पर ही रहे।
03 - सूरसिंह - सांवल दासजी के पुत्र सूरसिंह को ठिकाना गांव चलकोई मिला था।
04 - माधोसिंह - सांवल दासजी के पुत्र माधोसिंह पंजाब में चले गए थे सो इनके वंसज पंजाब पंजाब में हैं।
05 - जयमलजी - सांवल दासजी के पुत्र जयमलजी को ठिकाना गांव इन्द्रपुरा मिला था।
06 - कुम्कर्ण - सांवल दासजी के पुत्र ,कुम्कर्णजी के पुत्र किसनसिंह हुए।
पीढ़ी 05 - बलभद्रजी - सांवल दासजी के पुत्र बलभद्रजी को ठिकाना गांव चूरू मिला था। बलभद्रजी के एक हुवा भीमसिह ।
पीढ़ी 06 - भीमसिह - भीमसिह अपने पिता बलभद्रजी की गद्दी चूरू पर ही रहे [बलभद्रजी के पैट बैठे भीमसिंह]। भीमसिह के पांच पुत्र हुए -: 
01 - तेजसिँह - ठिकाना गांव लोसना [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान]।
02 - प्रतापसिँह - भीमसिह के पुत्र प्रतापसिँह को ठिकाना गांव लोहसना बड़ा और लोहसना छोटा [दोनों ही गांव तहसील व जिला चूरू, राजस्थान में] मिला था।
03 - कुशलसिंह - कुशलसिंह अपने पिता की गद्दी चूरू पर ही रहे। कुशलसिंह के एक पुत्र हुवा इन्द्रसिंह, अपने पिता की गद्दी चूरू पर ही रहे।
04 - भोजराजजी - भीमसिह के पुत्र भोजराजजी को ठिकाना गांव दुधवा खरा और दुधवा मीठा दोनों गांव के अलावा देपालसर,और मेघसर [सभी गांव राजस्थान के जिले चूरु में] मिले थे।
05 - सांवतसिह - भीमसिह चूरू के पुत्र।
पीढ़ी 07 - कुशलसिंह - कुशलसिंह ने बीकानेर के राजा करणसिंह व अनूपसिंह के साथ दक्षिण में रहकर कई युद्धों में भाग लिया था। जब ओरंगाबाद में करणसिंह की म्रत्यु हुयी, तब बीकानेर के सारे सरदार उन्हें छोड़कर बीकानेर चले आये थे मगर पर कुशलसिंह ने अपना कर्तव्य निभाया और करणसिंह के सारे मरत करम करवाए। कुशलसिंहजी ने ही चूरू शहर की सुरक्षा के लिए चुरू में किला बनवाया । सुरक्षा के कारण फतहपुर में बहुत से महाजन लोग यहाँ आकर बस गए । कुशलसिंह अपने पिता भीमसिह की गद्दी चूरू पर ही रहे।कुशलसिंहजी चूरू के दो पुत्र थे-:
01 - चत्रसालजी - चत्रसालजी को ठिकाना गांव देपालसर मिला था।
02 - इन्द्रसिंह - इन्द्रसिंह अपने पिता की गद्दी चूरू पर ही रहे।
पीढ़ी 08 - इन्द्रसिंह इन्द्रसिंह अपने पिता कुशलसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। शेखावतों द्वारा फतेहपुर की विजय के समय इन्द्रसिंह सेना सहित नवाब की सहायता को गए थे। इन्द्रसिंह के 6 पुत्र हुए-:
01 - जुझारसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र जुझारसिह को ठिकाना गांव सिरसला [जिला चूरू] मिला था। बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह ने इन्द्रसिंह से रुष्ट होकर चुरू का पट्टा जुझारसिंह के नाम कर दिया था। तब इन्द्रसिंह बीकानेर राज्य से विद्रोह हो गए। इन्द्रसिंह ने बीकानेर पर जोधपुर आक्रमण होने के समय जोधपुर का साथ दिया था। 
02 - संग्राम सिह - [कुशलसिंह के पाट बैठे संग्रामसिंह] संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे।संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था। बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह ने संग्रामसिंह की वि.सं.1798 में छल से गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] में हत्या करवा दी थी।
03 - भोपसिह -
04 - हनुमंतसिंह -
05 - जालम सिह -
06 - नत्थुसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था।
पीढ़ी 09 - संग्राम सिह - संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिह के तीन पुत्र हुए-:
01 - चेनसिह - चेनसिह अपने पिता संग्रामसिह की गद्दी चूरू पर ही रहे। 
02 -  धीरसिंह संग्रामसिंह के पाट बैठे धीरसिंह, धीरसिंह की मर्त्यु के बाद उनके भाई हरिसिंह चूरू की गद्दी पर बैठे। 
03 - हरिसिह - संग्रामसिह के पुत्र हरिसिह को चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास और खंडवा मिले थे। 
पीढ़ी 10 - धीरसिंह धीरसिंह की मर्त्यु के बाद उनके भाई हरिसिंह चूरू की गद्दी पर बैठे। धीरसिंह अपने पिता संग्रामसिह के पास चूरू पर ही रहे। धीरसिंह के दो पुत्र थे -:
01 - विजयसिह - धीरतसिह के पुत्र विजयसिह को ठिकाना गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। 
02 - सूरजमलजी - धीरतसिह के पुत्र सूरजमलजी को ठिकाना गांव झारिया [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। 
पीढ़ी 10 - हरिसिह संग्रामसिह के पुत्र हरिसिह को चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास और खंडवा मिले थे। हरिसिह के चार पुत्र थे -:
01 - शिव सिह - हरिसिह के पुत्र शिवसिह चूरू पर ही रहे। [हरिसिंह चूरू के पाट बैठे शिवसिंह [शिवसिंह को श्योजीसिंह व शिवजीसिंह के नाम से भी पुकारा जाता था। 
02 - मानसिह - हरिसिंह के पुत्र मानसिह को ठिकाना गांव भैरूंसर [तहसील व जिला चूरू में] मिला था। 
03 - सालमसिह - हरिसिंह के पुत्र सालमसिह को ठिकाना गांव रामसरा  [तहसील व जिला चूरू में] मिला था। 
04 - नाहरसिंह - हरिसिंह के पुत्र। 
पीढ़ी 11 - शिवसिह हरिसिंह चूरू के पाट बैठे शिवसिंह [शिवसिंह को श्योजीसिंह व शिवजीसिंह के नाम से भी पुकारा जाता था।चुरू के शिवसिहजी ने बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह की अधीनता स्वीकार नहीं की । अतः महाराजा सूरतसिंह ने अपनी सेना सहीत चुरू पर आक्रमण कर दिया लेकिन विफल होना पड़ा । जब जोधपुर द्वारा बीकानेर पर आक्रमण किया गया तब बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह ने शिवसिंह को अपनी सहतायार्थ बुलाया मगर शिवसिंहजी सहायता की बजाय बीकानेर क्षेत्र को लुटने लगे। सूरतसिंह ने अंत में 1870 वि.में चुरू पर आक्रमण कर दिया । महाराजा को सफलता न मिली और वहां से रिणी [वर्तमान तारानगर]चले गए। कुछ समय बाद सूरतसिंह ने फिर चुरू पर आक्रमण किया। शिवसिंहजी ने कड़ा मुकाबला किया। किले में जब गोला बारूद खत्म हो गया तो शिवसिंहजी ने चांदी के गोले ढलवाये और युद्ध जारी रखा । समय 1871 वि.कार्तिक सुदी में शिवसिंहजी का किले में देहांत हो गया तब कहीं  बीकानेर का चुरू पर अधिकार हुआ। इनके बाद शिवसिंहजी के पुत्र प्रथ्वीसिंह ने चुरू को वापिस लेने के लिए बहुत कोशिस की और अंत में  बहुत से लोगों की मदद से चुरू पर वापिस अधिकार कर लिया । बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह को बहुत चिंता हुयी और जब कोई उपाय न रहा तब अंग्रेजों से संधि कर ली और अंग्रेज सेनाधिकारी बिर्गेडियर अर्नाल्ड ने सूरतसिंह के सहयोग से चुरू पर अधिकार कर लिया। सूरतसिंह के मरने के बाद फिर बीकानेर के महाराजा रतनसिंह ने प्रथ्वीसिंह से मेल-मिलाप कर लिया और कुचेरा की जागीरी प्रथ्वीसिंह को दे दी। कुचोरा की गद्धी पर प्रथ्वीसिंह के बाद भैरूसिंह, बालसिंह ,प्रतापसिंह व कानसिंह रहे।
शिवसिह के 6 पुत्र थे-:
01 - पृथ्वीसिंह  - शिवसिह के पुत्र पृथ्वीसिंह चूरू पर ही रहे।
02  - भीमसिंह [भोपसिह] - शिवसिह के पुत्र भीमसिंह [भोपसिह] को ठिकाना गांव हर्सोलावा[जोधपुर] मिला था। 
03 - सगतसिह - शिवसिह के पुत्र सगतसिह को ठिकाना गांव हरपालसर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। सगतसिह के दो पुत्र हुए -:
     01 - रावतसिंह - रावतसिंह को ठिकाना गांव दांदू [जिला चूरू, राजस्थान]      
            मिला था। 
     02 - आईदानसिंह -आईदानसिंह को ठिकाना गांव पुनुसार [तहसील 
             सरदारशहर,जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।  
04 - चांदसिंह   
05 - पदमसिह – शिवसिह के पुत्र पदमसिह को ठिकाना गांव खंडवा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] और ठिकाना गांव हिगोनिय [हिंगुणिया,जयपुर के पास] मिला था। 
06 - सोभागजी
पीढ़ी 12 - पृथ्वीसिंह - शिवसिह के पुत्र पृथ्वीसिंह चूरू पर ही रहे। पृथ्वीसिंह के 6 पुत्र थे -:
01 - भैरूंसिंह - पृथ्वीसिंह चूरू के पाट बैठे भैरुँसिंह। भैरुँसिंह के अधिकार में चूरू के अलावा कुचेरा [कुचेरा पट्टा चूरू, जिला नागौर,राजस्थान] भी था। 
02 - भवानीसिह
03 - इसरीसिंह [ ईश्वरसिह] - इसरीसिंह को ठिकाना गांव बुचावास [तहसील तारानगर, जिला चूरू,राजस्थान] मिला था। 
04 - महेसदासजी - चूरू
05 - गोपालजी - गोपालजी को ठिकाना गांव धोधलिया व थिरियासर [दोनों ही गांव तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान] मिला था। 
06 - कुशलसिह - इसरीसिंह के कोई संतान नहीं थी इसलिए कुशलसिह अपने भाई इसरीसिंह के गोद गए। 
पीढ़ी 13 - भैरूंसिंह - भैरूंसिंह के पुत्र हुए लालसिंह। भैरूंसिंह चूरू के पाट बैठे लालसिंह। 
पीढ़ी 14 - लालसिंह भैरूंसिंह के पुत्र हुए लालसिंह। भैरूंसिंह चूरू के पाट बैठे लालसिंह। लालसिंह के तीन पुत्र थे-:
01 - प्रतापसिंह - लालसिंह चूरू के पाट बैठे प्रतापसिंह
02 - दीपसिंह
03 - जसवंतसिंह - प्रतापसिंह के कोई संतान  नहीं थी इसलिए, प्रतापसिंह के पाट बैठे उनके भाई जसवंतसिंह। जसवंतसिंह के भी कोई संतान नहीं थी इसलिए कानसिंह जसवंतसिंह के गोद गए। जसवंतसिंह के भी कोई संतान नहीं थी इसलिए कानसिंह जसवंतसिंह के गोद गए।
बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
बनीरोत राठोड़ों की पन्द्रह शाखाएँ हैं -:
01 - मेघराजोत बनिरोत राठौड़ -: 
बणीरजी के पुत्र मेघराजजी के वंसज मेघराजोत बनिरोत राठौड़ कहलाते हैं। मेघराजजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे।मेघराजजी को ठिकाना गांव ऊंटवालिया [तहसील व जिला चूरू,राजस्थान{भारत}]मिला था। ऊंटवालिया के आलावा मेघराजोत बनिरोत राठौड़ लोसणा,पनियाली,राणासर,इंद्रपुरा आदि गावों में भी बसते हैं।
मेघराजोत बनिरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -: 
मेघराजजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - मैकरनोत [मोहकरणोत] बनिरोत राठौड़ -: 
बणीरजी के पुत्र मेकर्णजी के वंसज मैकरनोत [मोहकरणोत] बनिरोत राठौड़ कहलाते हैं। मेकर्णजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। मेकर्णजीको ठिकाना गांव कानसर [जिला चूरू,राजस्थान{भारत}] मिला था। 
मैकरनोत [मोहकरणोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मेकर्णजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

03 - मेदसिंघोत बनिरोत राठौड़ -: 
बणीरजी के पुत्र मेदजी के वंसज मेदसिंघोत बनिरोत राठौड़ कहलाते हैं। मेदजी को ठिकाना गांव सिरियासर मिला था। मेदजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे।
मेदसिंघोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -: 
मेदजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
04 - अचलदासोत बनीरोत राठौड़ -: 
बणीरजी के पुत्र अचलदासजी के वंशज अचल्दासोत बनिरोत राठौड़ कहलाये हैं। अचलदासजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। ठिकाना गांव घांघू इनकी जागीरी में था। घांघू के अलावा श्योदानपुर,लखाऊ,सोमासी,कोटवाद ताल, लादड़िया अदि गावों में भी अचलदासोत बनीरोत राठौड़ रहते हैं। 
अचल्दासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -: 
अचलदासजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
05- महेशदासोत बनीरोत राठौड़ -: 
बणीरजी के पुत्र महेशदासजी के वंसज महेशदासोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। महेशदासजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। महेशदासजी को ठिकाना गांव घन्टेल व कडवासर मिला था। महेशदासोत बनीरोत राठौड़ गांव घन्टेल, कडवासर व  बिकसी आदि गावों में रहतें है।
महेशदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
महेशदासजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
06- रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] बनीरोत राठौड़ -: 
मालदेवजी के पुत्र रामचन्द्रजी के वंसज रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। रामचन्द्रजी को ठिकाना गांव बीनासर [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। रामचन्द्रजी;बणीरजी के पोते और बाघजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव बीनासर के अलावा देराजसर, मेहरासर, खरियो, खींवणसर, दानुसर आदि थे।
रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
रामचन्द्रजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
07- सूरसीहोत [सुरसिगोत] बनीरोत राठौड़ -: 
मालदेवजी के पुत्र सूरसिंह के वंसज सूरसीहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। सूरसिंह को ठिकाना गांव चलकोई [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। सूरसिंह;बणीरजी के पोते और बाघजी के पड़ पोते थे। 
सूरसीहोत [सुरसिगोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
सूरसिंह - मालदेवजी - - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी -- रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
08 - जयमलोत बनीरोत राठौड़ -: 
सांवलदासजी चुरू के पुत्र जयमलजी के वंशज जयमलोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। जयमलजी को ठिकाना गांव इन्द्रपुरा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। 
जयमलजी;मालदेवजी के पोते और बणीरजी के पड़ पोते थे। 
सूरसीहोत [सुरसिगोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
जयमलजी - सांवलदासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
09- प्रतापसिगोत बनीरोत राठौड़ -: 
भीमसिह के पुत्र प्रतापसिंह के वंसज प्रतापसिगोत बनीरोत राठौड़ राठौड़ कहलाये हैं। प्रतापसिंह; बलभद्रजी के पोते और सांवल दासजी के पड़ पोते थे। प्रतापसिंह को ठिकाना गांव लोसणा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] और तोगावास [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। 
लोसणा के अलावा इनके ठिकाना गांव तोगावास, खींवसर, कर्णपुरा,कोटवाद टीबा, एक बस गांव जोड़ी [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] का आदि थे। 
प्रतापसिगोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
प्रतापसिंह - भीमसिह  - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
10 - भोजराजोत बनीरोत राठौड़ :- 
भीमसिंह जी के पुत्र भोजराजजी के वंशज भोजराजोत बनीरोत कहलाते है। भोजराजजी; बलभद्रजी के पोते और सांवल दासजी के पड़ पोते थे।    भोजराजजी को ठिकाना गांव दुधवा खरा और दुधवा मीठा दोनों गांव के अलावा देपालसर,और मेघसर [सभी गांव राजस्थान के जिले चूरु में] मिले थे। इन के अलावा थेलासर, जसरासर, रामपुरा, लालासर, ढाढरियो, कुणसीसर, आसुसर, हणवतपुरा 
आदि थे। 
भोजराजोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
भोजराजजी - भीमसिह  - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
11-  चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ :- 
कुशलसिंहजी चुरू के पुत्र चत्रसालजी के वंशज चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। चत्रसालजी को ठिकाना गांव देपालसर [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ों का देपालसर के अलावा मेघसर, श्यामपुरा, बिनासर, ढाढर, माथौड़ी, बरड़ादास, भामासी आदि थे। चत्रसालजी ; भीमसिह के पोते और बलभद्रजी के पड़ पोते थे।    
चत्रसालजी 
चत्रसालोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
चत्रसालजी - कुशलसिंहजी - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी -
12- इन्द्रसिंगोत बनीरोत राठौड़ :- 
कुशलसिंह चूरू के पुत्र इन्द्रसिंह के वंसज इन्द्रसिंगोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। इन्द्रसिंह;भीमसिह के पोते और बलभद्रजी के पड़ पोते थे। 
इन्द्रसिंह के 6 पुत्र हुए-:
01 - जुझारसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र जुझारसिह को ठिकाना गांव सिरसला [जिला चूरू] मिला था।
02 - संग्राम सिह - संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था।
03 - भोपसिह -
04 - हनुमंतसिंह -
05 - जालम सिह -
06 - नत्थुसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था।
इन्द्रसिंगोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
13- नथमलोत बनीरोत राठौड़ :- 
इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह के वंसज नथमलोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था। नत्थुसिह ; कुशलसिंह के पोते और भीमसिह के पड़ पोते थे। 
नथमलोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
नत्थुसिह - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
14 - धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ :- 
संग्रामसिंह चूरू के पुत्र धीरसिंह के वंशज धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं।  [कुशलसिंह के पाट बैठे संग्रामसिंह] संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था। बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह ने संग्रामसिंह की वि.सं.1798 में छल से गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] में हत्या करवा दी थी। 
संग्रामसिंह के बाद धीरसिंह चुरू के ठाकुर बने । सात्यूं [इकलड़ी ताजीम], झारिया [दोलड़ी ताजीम] के अलावा पीथीसर, रिड़खला,जोड़ी [एक बस जोड़ी का] , रेतना [ रेतना गांव वर्तमान में भालेरी गांव में लगभग मिल गया है ] आदी इनके ठिकाने थे
धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
धीरसिंह - संग्रामसिंह - - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
15 - हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ :- 
संग्रामसिंह चूरू के पुत्र हरिसिंह के वंसज हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। धीरसिंह के भाई हरिसिंह भी चुरू के ठाकुर थे। हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ों के चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास ,खंडवा, धोधलिया, थिरियासर, घांघू, हरपालसर आदी ठिकाने थे। तथा इनका एक ठिकाना जोधपुर रियासत में हरसोलाव  तथा प्राचीन राज्य जयपुर में हिंगोलिया भी इनका ठिकाना था।  
हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
हरिसिंह - संग्रामसिंह - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
मेरे द्वारा लिखित बनीरोत राठौड़ों का इतिहास व इनके बारे में दी गयी जानकारी आपको कैसी लगी ? अगर आप भी अपने पुरे वंस का इतिहास उपरोक्त में जुड़वाना चाहते हैं, तो सम्पूर्ण विवरण लिख भेजिए या मेरे से संपर्क कीजिये अपनी पीढ़ी का सम्पूर्ण इतिहास सुरक्षित रहे। My mob.no.9901306658 . 
ms .pepsingh @rediffmail.com
अगर आपके पास भी कोई जानकारी हो तो लिख भेजिए आपके सुझाव व स्नेह सहर्ष आमंत्रित है।

[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास 
गाँवपोस्ट - तोगावासतहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थानपिन - 3313
।।इति।।

Sunday 16 July 2017

128 - मेड़तिया राठौड़

मेड़तिया राठौड़
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खापे - मेड़तिया राठौड़

मेड़तिया राठौड़  - मंडोर [जोधपुर] के शासक राव जोधाजी के पुत्र राव दूदाजी के वंशज मेड़ता नामक गांव में रहने के कारन गांव नाम से मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। मेड़तिया राठौड़ों को दूदावत राठौड़ भी कहा जाता है। मेड़ता ठिकाने में 360 गांव थे , मेड़ता के अलावा परबतसर, नांवा, मारौठ,जैतारण, कौलियां, नागौर तथा दौलतपुरा परगने की लगभग 600 ठिकाने और जागीर मेड़तिया राठौड़ों के अधिकार में थी। 
राव दूदाजी - राव दूदाजी का जन्म जोधाजी की सोनगरी राणी चाम्पाकँवर की कोख से 15 जून 1440 को हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानधाता नामक राजा ने मेड़ता नगर की स्थापना की थी, जिसका प्राचीन नाम मेड़तपुर या मेड़न्तक था। मेड़ता नगर 1318 ई. के बाद उजड़ कर वीरान होगया था तब वरसिंह व दूदाजी ने मिलकसर मेड़ता नगर को ने आबाद किया। बरसिंह व दूदाजी ने मिलकर परमार [सांखला- परमार राजपूतों की एक शाखा] राजपूतों से चौकड़ी, कोसाणां और मादलिया आदी गांव जीतकर अपने अधिकार में किये। इसके बाद दूदा अपने भाई राव बीका के पास बीकानेर चले गए जहाँ काफी समय तक रहे। बीकानेर के मार्ग में दूदा की भेंट सिद्ध पुरुष जाम्भोजी से हुई जिसने मेड़ता प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। 
हिसार के सूबेदार सारंगखाँ द्वारा राव बीकाजी के चाचा कांधलजी को मार डाला गया। तब राव जोधाजी, राव बीकाजी और दूदाजी ने मिलकर सारंगखाँ पर आक्रमण किया। सारंगखाँ युद्ध में मारा गया और उसकी सेना परास्त हुई। इस युद्ध में दूदा जी ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया था।
जैतारण के स्वामी मेघा सींधल के पिता द्वारा आसकरणजी राठौड़ [शक्तावत] के वध का बदला लेने के लिए राव जोधाजी ने राव दूदाजी को भेजा। दूदाजी व मेघा सीधल के बीच एकाकी युद्ध हुआ। इसमें दूदाजी ने मेघा का सिर धड़ से अलग कर अपनी युद्ध कला का परिचय दिया। वरसिंह ने 1490 ई. में सांभर पर आक्रमण किया था । सांभर के हाकिम मल्लू खां ने इसका बदला लेने की सोच मेड़ता पर आक्रमण कर दिया, वरसिंह मेड़ता छोड़कर जोधपुर चला गया। मेड़ता को मल्लू खां ने लूटा और उसके सैनिकों ने गौरीपूजा के लिए जाती महिलाओं का अपहरण कर लिया। राव दूदाजी को जब इस घटना का पता लगा तो वे सेना सहित जोधपुर पहुँचे और जोधपुर से सातलजी, सूजाजी और वरसिंह को साथ लेकर राव दूदाजी सेनासहित बीसलपुर पहुँचे। युद्ध कला के अनुभवी वरजांगजी ने भींवोतजी राठौड़ को अपने साथ मिला कर रात्रि के समय शत्रु मल्लू खां की सेना पर अचानक हमला कर दिया। मल्लूखाँ पराजित हुआ और मीर घुड़ला मारा गया। दूदाजी के पराक्रम व रण कौशल की इससे बड़ी ख्याति हुई। दूदाजी ने शत्रु सेना को चीरते हुए सारंगखां का पीछा कर उसका हाथी छीन लिया था।
मल्लूखां ने माण्डू के बादशाह से सैनिक सहायता प्राप्त कर कोसाणा की हार का बदला लेने के लिए मेड़ता पर आक्रमण कर दिया। वरसिंह जब समझोते के लिए अजमेर गया तो धोखे से मल्लू खां ने उसे बन्दी बना लिया। इसकी सूचना मिलते ही राव बीका और जोधपुर के राव सूजा की संयुक्त  सेना ने चढ़ाई की जिसकी सूचना मिलते ही मल्लू खां ने सुलह कर वरसिंह को रिहा कर दिया। मल्लू खां ने अजमेर में वरसिंह को जहर दे दिया था। जिसके कारण छह माह बाद वरसिंह का देहान्त हो गया। वरसिंह का बड़ा पुत्र सींहा मेड़ता का शासक बना जो अयोग्य एवं विलासी था। सींहा की मां ने दूदा को बीकानेर से बुला कर मेड़ता का शासन प्रबन्ध उन्हें सौंप दिया और आधी आय सींहा को देने का फैसला किया गया। इस प्रकार मेड़ता बचा लिया गया। मेड़ता राव दूदाजी और सीहाजी में बंटकर आधा-आधा रह गया। राव दूदाजी ने सींहाजी की हरकतों को दो वर्ष तक देखा और सुधार न देखकर सींहाजी को जागीर रांहण का पट्टा देकर रांहण भेज दिया। सींहाजी को जागीर रांहण भेजकर राव दूदाजी सन् 1495 में मेड़ता के पूर्ण स्वामी बन गए।”राव दूदाजी के दो राणियों से एक पुत्री और पांच पुत्र हुए थे -:
01 – वीरमदेव - राव दूदाजी के उत्तराधिकारी बनें।
02 - रायमलजी - मारवाड़ में भड़ाना, बांसणी, जीलारी ठिकाणे है। मेवाड़ राज्य में हुरड़ा के कुछ ग्रामों में जागीरी है।
03 - रायसलजी
04 - रतनसिंह - इनके कोई पुत्र नहीं हुआ। केवल एक पुत्री हुई जो मीरांबाई के नाम से विश्वविख्यात हुई। रतनसिंह को राव दूदा ने जागीर में 12 गांव प्रदान किये
थे। जिनके नाम -:नींबडी, पालड़ी, हकधर, नूंद,आकोदिया, मोटास, पीमणियां, डूमांणी, सुंदरी, कुड़की, नैया, मांझी-बाझोती थे।रतनसिंह का विवाह मेवाड़ के
गोगुन्दा के झाला सरकार कहलाएं हमीर की पुत्री कुसुब कंवर से हुआ था। परोहित हरनारायणत्री ने मीरां की माता का नाम ‘वीर कुंवरी’ तथा नाना का नाम गोगुदां के झाला सुलतानसिंह लिखा है। मीरांबाई का विवाह चित्तौड़ के प्रसिद्ध वीरवर महाराणा संग्रामसिंह के युवराज भोजराज से हुआ। रत्नसिंह को निर्वाह के लिए 12 बारह गांव दिए। वि.सं. 1584 चौथ शुक्ला 14 [1526 ई.] 17 मार्च को बयाने में माहाराणा संग्रामसिंह का मुगल बादशाह बाबर से प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। उसमें वे मुसलमानों की बड़ी वीरता से युद्ध करके काम आए।
05 - पंचायणजी -नि:संतान रहे।
06 - गुलाबकँवर

मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
दूदाजी के उपरोक्त इन पांच पुत्रों और इनके वंशजो से मेड़तिया राठौड़ों का वंश आगे बढ़ा जिस से मुख्य इकतीस शाखाएं निकली जिनका विवरण इस प्रकार है -
[इकतीस के अलावा और भी बहुत सी शाखाएं हो सकती है,अगर आपके पास कोई जानकारी हो तो जरूर मुझ से सम्पर्क कर इसमें जुड़वाने का काम जरूर करें]
01 - रायमलोत मेड़तिया राठौड़ -: 
मेड़ता के राव दूदाजी के पुत्र रायमलजी के वंसज रायमलोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। रायमलजी; मंडोर [जोधपुर] के शासक राव जोधाजी के पोते और रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।वीरमदेवजी ने अपने भाई रायमलजी को ठिकाना गांव रायाण का पट्टा प्रदान किया था। मेड़ता के राव दूदाजी के पुत्र वीरमदेवजी ने अपने भाई रायमलजी को ठिकाना गांव रायाण का पट्टा प्रदान किया था। विक्रम सम्वत 1583 में खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा के पक्ष में आपने भाई वीरमदेव सहित रायमलजी वीरगति को प्राप्त हुए। रायमल के एक  पुत्र अर्जुन व उसके भतिजे रूपसिंह चितौड़ के तीसरे शाके के समय वि.सं.1624 में काम आये। रायाणा के अलावा ढावो, जोरोडो,पडो,जालूबासणी, जाल ,बारवलो ,जनस्वास ,देवालोमोसो ,मीठड़ीया आदी इनके ठिकाने थे।
रायमलोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
रायमलजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - जयमलोत मेड़तिया राठौड़ -: 
वीरमदेवजी के पुत्र जयमलजी के वंसज जयमलोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। जयमलजी; राव दूदाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
वीरमदेवजी - वीरमदेव मेड़ता का शासक बना। 17 मार्च सन् 1527 ई. को राणा सांगा और बाबर के बीच खानवा के युद्ध में मेड़ता के राव वीरमदेव के साथ उसके भाई रायमल तथा रतनसिंह सहित 5000 सैनिकों ने इस युद्ध में भाग लिया। राणा सांगा युद्ध में अचेतन हो गए थे तथा वीरमदेव उस युद्ध में घायल हो गए थे। रायमल तथा रतनसिंह मुगल सेना का संहार करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इसी रतनसिंह की एक मात्र सन्तान मीरांबाई थी। वीरमदेव ने दो बार राणा सांगा के पक्ष में युद्ध में भाग लिया। 
गुजरात के बादशाह के सेनापति शमशेरुलमुल्क को वीरमदेवजी के हाथों पराजित होकर भागना पड़ा। यह युद्ध आलनियावास में हुआ था। वीरमदेवजी ने ई. 1535 में अजमेर पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया। राव मालदेवजी ने पाटवी के नाते अजमेर की मांग की किन्तु वीरमदेवजी ने मना कर दिया। इस पर मालदेवजी ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया। वीरमदेवजी अपने सरदारों के कहने पर अजमेर चले गए और मेड़ता पर 1536 ई. में मालदेवजी का अधिकार हो गया इसके बाद मालदेवजी ने अजमेर भी छीन लिया और वीरमदेवजी डीडवाना चले गए। मालदेवजी की सेना ने वीरमदेवजी का पीछा करने पर वीरमदेवजी नाण [अमरसर शेखावाटी] पहुंचकर राव रायमलजी शेखावत के पास साल भर रहे। इसके बाद वीरमदेवजी ने ई. 1537 में चाटसू पर अधिकार कर लिया वहां से मालदेवजी की सेना द्वारा पीछा करने पर वीरमदेवजी  क्रमश: लालसोट व बंवाली मौजाबाद चले गए। जैताजी  और कुंपाजी  बिना युद्ध किए ही बंबाली से वापस जोधपुर लौट आए। वीरमदेवजी मेड़ता पर पुनः अधिकार करना चाहता था। मालदेवजी ने बीकानेर के राव जैतसिंह को भी खत्म कर बीकानेर पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। जैतसिंह का पुत्र कल्याणमलजी सिरसा में रहन लगा। उसका मन्त्री नगराज शेरशाह सूरी की सेवा में गया। दूसरी ओर वीरमदेवजी भी रणथम्भौर के नवाब की मदद से शेरशाह के पास पहुंचे दोनों ने मालदेव पर चढ़ाई करने के लिए शेरशाह को तैयार कर लिया।
शेरशाह अपनी विशाल सेना लेकर कर राव मालदेवजी  के साथ युद्ध के लिए तैयार होगया । राव वीरमदेवजी और राव कल्याणमलजी भी उसके साथ थे। यह सूचना मिलने पर मालदेवजी भी अपने प्रसिद्ध सेना नायक जैताजी, कूंपाजी, अखैराजजी सोनगरा, जैसाजी चांपावत सहित सामने आ डटे। किन्तु दोनों ही पक्ष युद्ध की भयावहता से भयभीत हो एक माह तक आमने-सामने पड़ाव डाले पडे रहे। तब वीरमदेवजी ने छल की नीति अपनायी और मालदेवजी के सरदारों को सस्ती कीमत में ढ़ालें बिकवाने की योजना बनाई और उनकी गद्दियों में जालीपत्र व मोहरें भरवा दी और इसकी जानकारी मालदेवजी तक पहुंचा दी गई कि आपके सरदारों को बादशाह ने अशर्फियों से खरीद लिया है। मालेदवजी ने जांच की तो अपने सरदारों पर सन्देह हो गया। वीरमदेवजी की इस कार्यवाही का किसी भी सरदार को पता नहीं चला। विस्वस्त सरदारों को बिना बताए ही मालदेवजी एक रात्रि को अन्धेरे में रणक्षेत्र से वापस लौट गया और 
मालदेवजी के साथ उनकी अधिकांश सेना भी चली गई मात्र 10 हजार सैनिक सहित जैताजी और कूपाजी बचे थे। सुमेल के इस ऐतिहासिक युद्ध में वीरवर जैताजी,कूंपाजी, अखैराजजी सोनगरा आदि अन्तिम समय तक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हए। इस युद्ध में राजपूत सेना की बहादुरी व आक्रमण क्षमता को देख शेरशाह के मुंह से स्वयं ही ये शब्द निकले 'एक मुट्ठी बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की बादशाही खो देता'। इस लोमहर्षक युद्ध के बाद वीरमदेव को मेड़ता पुनः प्राप्त हुआ हो गया।छ: वर्ष के संघर्ष के बाद मेड़ता पर वीरमदेव का अधिकार हुआ। मेड़ता के आस-पास के सभी ठिकानों पर मेड़तिया राठौड़ों ने पुनः अधिकार कर लिया। मेड़ता व बीकानेर के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गए किन्तु मालदेव व मेड़तिया राठौड़ों के बीच पड़ी दरार ने भविष्य मे बड़ा रूप ले लिया। राठौड़ शक्ति दो भागों में विभक्त हो गई। एक ओर जोधपुर के शासक व उसके सामन्त तो दूसरी ओर मेड़ता व बीकानेर जिसका लाभ शत्रु को मिलना स्वाभाविक ही था। राव वीरमदेवजी की मृत्यु 66 वर्ष की आयु में फरवरी सन् 1544 में हुयी । मीरां बाई ने प्रसन्न होकर अपने भतीजे जयमलजी को दो वरदान प्रदान किये थे, 
''बाणो बधे तेरो परिवार। 
होवे नहीं समर में हार''।। 
ये दोनों वचन आज तक भी प्रत्यक्ष दृष्टि में आते है कि जोधपुर राज्य में चांपावत, कंपावत, वैरावत, उदावत आदि शाखाएं बहुत बड़ी मानी जाती है, परन्तु उनमें सबसे ज्यादा बढ़ोतरी इसी खांप की हुयी है।
राव वीरमदेवजी के तीन पुत्री और ग्यारह पुत्र थे –: 
01 - राव जयमलजी 
02 - इशरदासजी - इशरदासजी ईशरदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
03 - आसासिंह [अचलसिंहजी]- आसासिंह [अचलसिंहजी] के दो पुत्र थे -:
       01- कल्लाजी [केसरसिंह]
       02 - तेजसिंह
कल्लाजी राठौड़ का जन्म का आश्विन शुक्ल 8[दुर्गाष्टमी को] विक्रम संवत 1601 को राजस्थान प्रान्त के मेड़ता नगर में हुआ था। जन्म मेड़ता राजपरिवार में आश्विन शुक्ल 8, विक्रम संवत 1601 को हुआ था।कल्लाजी के पिता आसासिंह मेड़ता के राव जयमलजी के छोटे भाई थे। आसासिंह को अचलसिंहजी के नाम से भी जाना जाता था। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ से इन्होंने योग की शिक्षा पायी थी।
इनके पिताजी का नाम राव श्री अचलसिंहजी व माता का नाम श्वेतकँवर था मीरा बाई कल्लाजी की बुआ लगती थी।कल्लाजी के जन्म का नाम केसरसिंह था। अचलसिंहजी
सामियाना जागीर के राव थे।कल्लाजी के छोटे भाई का नाम तेजसिंह था। कल्ला जी को शेषनाग के अवतार के रूप मन जाता है क्योकि ,कहा जाता है की, इनकी माता श्वेतकँवर ने शिव पार्वती के आशीर्वाद से उन्हे प्राप्त किया था।
मेवाड़ राज्य के छप्पन परगना रनेला में शांति कायम करने हेतु व सुचारू रूप से शासन हेतु रनेला का जागीरदार घोषित किया।
कल्लाजी का विवाह शिवगढ़ [वागड़ राज्य] के राव कृष्णदास चौहान [हाड़ा] की पुत्री कृष्णकांताकँवर के साथ हुवा था। तथा तेजसिंह का विवाह राव कृष्णदास चौहान के अनुज रामदास की पुत्री चपलाकँवर के साथ हुवा था।मुगलो के साथ लड़ाई में [संवत 1624में सन् 1568] एक मुगल ने पीछें से तलवार चला कर वीर कल्लाजी का सिर काट दिया। अब बिना सिर के कल्लाजी का कंबध (कमधज) घोर संग्राम करता हुआ दोनों हाथों से तलवार लिये मुगलों की फौज को चीरता कल्ला का कंबध योग व देवी शक्ति और गुरु आशीर्वाद से कृष्णकांताकँवर की याद में आधुनिक मंगलवाड़, कुराबड़, बम्बोरा जगत और जयसमन्द होता हुआ रनेला जा पहुंचा। रनेला में कल्लाजी का कबंध नीले घोड़े पर सवार होकर दो हाथों में तलवार लेकर आया। वीर शिरोमणी कल्लाजी ने राजकुमारी को दिये हुये वचन को पूरा करता हुआ रनेला की पावन धरा पर अपना मानव देह त्याग दिया।
राजपुताना परम्परा के अनुसार कृष्णकांताकँवर ने सती होने के लिये कल्लाजी के कबंध को गोद में लेकर चिता में विराजमान हो गई। हाथ जोड़ राजकुमारी ने मन ही मन भगवान को स्मरण किया की मेरे स्वामी का सिर मुझको प्राप्त हो। राजकुमारी के सतीत्व की शक्ति से कल्लाजी का सिर भैरवनाथ व देवीय शक्ति की कृपा से उनकी गोद में आ गया।
तब कल्लाजी को शीश कबंध से जोड़ विक्रम संवत 1624 (26 फरवरी 1568) में कल्लाजी के भाई तेजसिंह ने ईश्वर का स्मरण कर चिता में आग लगा दी। इस प्रकार वीर शिरोमणी कल्लाजी और महासती कृष्णकांताकँवर का प्रेम आज पुरे विश्व में अमर हो गया।
04 - करण
05 - जगमालजी -
जगमालजी जगमलोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
06 - चांदाजी - चांदाजी चांदावत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
07 - बिकाजी
08 - पृथ्वीराज
09 - प्रतापसिंह - प्रतापसिंह प्रतापसिंहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
10 - सारंगदेजी
11 - मांडणजी - मांडणजी मांडनोत मेड़तिया कहलाये हैं।
12 - श्यामकंवर
13 - फूलकंवर –
14 - अभयकंवर
राव जयमलजी - राव जयमलजी चितौड़ [मेवाड़] सेना के कमांडर व मेड़ता के पांचवें राजा बनें थे। जयमलजी बड़े वीर थे। जयमलजी का जन्म 17 सिप्तम्बर 1507 इ.स.1544 को हुवा था और विक्रम सम्वत 1600 में मेड़ता के स्वामी बने। जोधपुर के राव मालदेवजी ने मेड़ता पर आक्रमण किया तो उन्हें जयमलजी से पराजीत होना पड़ा था। मालदेवजी मेड़ता छीनना चाहते थे उन्हें फिर दूसरी बार 1557 ई. में मेड़ता पर आक्रमण किया और जयमलजी को हराकर मेड़ता पर अधिकार कर लिया। मालदेवजी ने मेड़ता को जीतकर आधा मेड़ता जयमलजी के भाई जगमालजी को दे दिया। मेड़ता का राज छूटने पर  जयमलजी सहायता के लिए बादशाह अकबर पास गए, और अकबर से सहायता पाकर1563 ई.[विक्रम सम्वत 1620 में] मेड़ता पर पुन: अधिकार कर लिया। कुछ समय बाद जयमलजी ने अकबर के विद्रोही सरफुधीन को शरण देकर आफत मोल लेली जिसके चलते अकबर की सेना ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया।
15 वीं शताब्दी में दिल्ली के मुग़ल बादशाह अकबर ने मेवाड़ [चित्तौड़] पर आक्रमण की योजना बनायी और खुद 60000 मुगल सैनिको सहित मेवाड़ आया। उस वक़्त मेवाड़ [चित्तौड़] के महाराणा उदयसिंह मुगल सैनिको से लोहा लेने को तैयार हुए और उनके पूर्वजों बाप्पा रावल, राणा हमीर, राणा कुम्भा और राणा सांगा के मेवाड़ी वंसज भी उनका साथ देने के लिए तैयार हुए लेकिन मेवाड़ के तत्कालीन सभी ठाकुर और उमराव ने उदयसिंहजी को मुगल सैनिको से से युद्ध न करने की सलाह दी गयी कहा की,मेवाड़ हित इसी में है, की आप युद्ध न करें क्योंकी आपको कुंभलगढ़ में सेना मजबूत करनी है। मगर उदयसिंहजी के ना मानने पर सभी  उमरावो व ठाकुरो ने उन्हें कुंभलगढ़ भेज दिया और फैसला किया की, मेड़ता के राव दूदाजी पोते वीरो के वीर शिरोमणि जयमलजी मेड़तिया को चित्तोड़ का सेनापति बनाकर भार सौंप दिया
जाय और जयमलजी के साले जी पत्ताजी चुण्डावत को उनके साथ नियुक्त कर दिया जाय।
जयमलजी को चितौड़ का भार सौंपनें की खबर मिलते ही जयमल जी और भाई प्रताप सिंह और दूसरे भाई भतीजे सभी राठौड़ चित्तोड़ की और निकल पड़े। मेड़ता से निकलने के बाद  अजमेर से आगे मगरा क्षेत्र में उनका सामना वहां बसने वाली रावत जाति के कुछ लूटेरो से हुवा, भारी लाव लश्कर और जनाना के साथ जयमल जी को लूटेरो ने रोक दिया एक लूटरे ने सिटी बजायी देखते ही देखते एक पेड़ तीरो से भर गया सभी समझ चुके थे की वे लूटेरो से घिरे हुए है।
तभी भाई प्रताप सिंह ने कहा की "अठे या वटे" जयमल जी ने कहा "वटे" तभी जनाना आदि ने सारे गहने कीमति सामान वही छोड़ दिया और आगे चल पड़े लूटेरो की समझ से ये बाहर था कि एक राजपूत सेना जो तलवारो भालो से सुसज्जित है वो बिना किसी विवाद और लडे इतनी आसानी से सारे गहने कैसे छोड़ कर जा सकते है। अभी जयमल की सेना अपने इष्ट नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के दर्शन ही कर रही थी कि तभी लूटेरे फिर आ धमके और लुटेरों के सरदार ने जयमलजी से कहा कि, ''ये "अटे और वटे" क्या है ?''
तब वीर जयमलजी मेड़तिया ने कहा की यहाँ तुमसे धन के लिए लडे या वहा [वटे] चित्तौड़ में तुर्को से ?
यह सुन कर लूटेरे सरदार की आँखों में आंसू आ गए और उसने जयमल जी के पैरों में गिर कर माफ़ी मांगी और अपनी टुकड़ी को भी सेना में शामिल करने की बात कही, पर जयमल जी ने कहा की तुम लूटपाठ छोड़ यहीं मुगलो का सामना करो। अतः लूटेरे आधे रास्ते वीरो को छोड़ने आये और फिर लोट गए।
अकबर ने जब मगसिर बदी 6विक्रम सम्वत1624 को चितौड़ घेर लिया संकट की इस घड़ी में जयमलजी ने उदयसिंह को चितौड़ से बाहर भेजकर चितौड़ की रक्षा का भार आपने ऊपर लेलिया
और मेड़ता के सभी वीर अब चित्तोड़ में प्रवेश कर गए और किले की प्रजा को सुरक्षित निकालने में जुटे ही
 थे कि, तभी खबर मिली की मुग़ल सेना ने 10 किमी दूर किले के नीचे डेरा जमा दिया है। सभी 9 दरवाजे बंद किये गए 8000 राजपूत वीर वही किले में रहे।
मुगलो ने किले पर आक्रमण किया पर वो असफल रहे आखिर में मुगलो ने किले की दीवारो के निचे सुरंगे बनाई पर रात में राजपूत फिर उसे भर देते थे, किले के दरवाजो के पास की दीवारे तोड़ी पर योद्धा उसे रात में फिर बना देते थे। ये सिलसिला पांच माह तक चलता रहा पर किले के निचे मुगलो की लाशे बिछती रही। उस वक़्त मजदूरी इंतनी महगी हो गयी की एक बाल्टी मिट्टी लाने पर एक मुग़ल सैनिक को एक सोने का सिक्का दिया गया। वहाँ मिटटी सोने से अधिक महंगी हो गयी थी।
आखिर अकबर ने जयमलजी के पास अपना दूत भेजकर प्रलोभन दिया कि अगर मेरी अधीनता स्वीकार करो तो जयमल को उसके पुरखों का राज्य मेड़ता सहित पूरे मेवाड़ का भी राजा बना दिया जायेगा। तब अकबर के दूत ने राव जयमलजी मेड़तिया के सामने हाजिर होकर कहा कि:-
है गढ़ म्हारो म्है धणी,असुर फ़िर किम आण।
कुंच्यां जे चित्रकोट री दिधी मोहिं दीवाण।।
जयमल लिखे जबाब यूँ सुनिए अकबर शाह।
आण फिरै गढ़ उपरा पडियो धड पातशाह।।
अर्थात अकबर ने कहा जयमल मेड़तिया तू अपने प्राण चित्तोड और महाराणा के लिए क्यों लूटा रहा है ? तू मेरा कब्ज़ा होने दे में तुझे तेरा मूल प्रदेश मेड़ता और मेवाड़ दोनों का राजा बना दूंगा ।
पर जयमलजी ने इस बात को नकार कर उत्तर दिया मै अपने स्वामी के साथ विश्वासघात नही कर सकता। मेरे जीते जी तू अकबर तुर्क यहाँ प्रवेश नही कर सकता मुझे महाराणा यहाँ का सेनापति बनाकर गए है। अकबर के संधि प्रस्ताव को जयमलजी ने ठुकरा दिया
अब अकबर घबरा गया और उसने अजमेर शरीफ से दुवा मांगी कि अगर वो इस युद्ध में कामयाब हो गया तो वो अजमेर जियारत के लिए जरुर जाएगा।
एक दिन रात में जयमलजी किले की दिवार ठीक करवा रहे थे और अकबर की नजर उन पर पड़ गयी। तभी अकबर ने अपनी बन्दुक से एक गोली चलाई जो जयमलजी के पैरो पर आ लगी और वो घायल हो गए। गोली का जहर शरीर में फैलने लगा। अब राजपूतो ने कोई चारा न देखकर जौहर और शाका का निर्णय लिया।
आखिर वो दिन आ ही गया 6 माह तक किले को मुग़ल भेद नही पाये और रसद सामग्री खाना आदि खतम हो चुकी था। किले में आखिर में एक ऐसा निर्णय हुआ जिसका अंदाजा किसी को नही था और वो निर्णय था जौहर और शाका का और दिन था 23 फरवरी 1568 ई.इस दिन चित्तौड़ किले में कुण्ड को साफ़ करवाया गया गंगाजल से पवित्र किया गया ।बाद में चन्दन की लकड़ी और नारियल से उसमे अग्नि लगायी गयी उसके बाद जो हुआ वो अपने आप में एक नया इतिहास था।

हजारों राजपूतानिया अपने अपनी पति के पाव छूकर और अंतिम दर्शन कर एक एक कर इज्जत कि खातिर आग में कूद पड़ी और सतीत्व को प्राप्त हो गयी ये जौहर नाम से जाना गया।
रात भर 8000 राजपूत योद्धा वहा बैठे रहे और सुबह होने का इन्तजार करने लगे । सुबह के पहले पहर में सभी ने अग्नि की राख़ का तिलक किया और देवी पूजा के बाद सफ़ेद कुर्ते पजामे और कमर पर नारियल बांध तैयार हुए।
अब जौहर के बाद ये सभी भूखे शेर बन गए थे। मुग़ल सेना चित्तोड किले में हलचल से पहले ही सकते में थी। उन्होंने रात में ही किले से अग्नि जलती देखकर समझ आ गया था कि जौहर चल रहा है और कल अंतिम युद्ध होगा।
सुबह होते ही एकाएक किले के दरवाजे खोले गए। जयमल जी के पाँव में चोट लगने की वजह से वो घोड़े पर बैठने में असमर्थ थे तो वो वीर कल्ला जी राठौड़ के कंधे पर बेठे।
युद्ध शुरू होते ही वीर योद्धाओ ने कत्ले आम मचा दिया अकबर दूर से ही सब देख रहा था।जयमल जी और कल्ला जी ने तलवारो का जोहर दिखाया और 2 पाव 4 हाथो से मारकाट करते गये उन्हें देख मुग़ल भागने लगी।
स्वयं अकबर भी यह दृश्य देखकर अपनी सुध बुध खो बैठा। उसने चतुर्भुज भगवांन का  नाम सुन रखा था।
"जयमल बड़ता जीवणे, पत्तो बाएं पास।
हिंदू चढिया हथियाँ चढियो जस आकास"।।
पत्ता जी प्रताप सिंह जी जयमल जी कल्ला जी आदि वीरो के हाथो से भयंकर मार काट हुयी ।
सिर कटे धड़ लड़ते रहे।
"सिर कटे धड़ लड़े रखा रजपूती शान "
दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥
जयमल जी के एक वार से एक साथ दो-दो मुग़ल तुर्क साथ कटते गए किले के पास बहने वाली गम्भीरी नदी भी लाल हो गयी। सिमित संसाधन होने के बाद भी राजपूती सेना मुगलो पर भारी पड़ी। युद्ध समाप्त हुआ कुल 48000 सैनिक मारे गए जिनमे से पुरे 8000 राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए तो बदले में दुश्मन की सेना के 40000 मुग़लो को भी मौत के घाट उतरा गया।
बचे तो सिर्फ अकबर के साथ 20000 मुग़ल बाद में अकबर किल्ले में गया वहा कुछ न मिला। तभी अकबर ने चित्तौड़ की शक्ति कुचलने के लिये वहाँ कत्लेआम का आदेश दिया और 30 हजार आम जनता को क्रूरता से मारा गया। यह कत्लेआम अकबर पर बहुत बड़ा धब्बा है।
अकबर जयमलजी और पत्ताजी की वीरता से प्रभावित हुआ और नरसंहार का कलंक धोने के लिये उसने उनकी अश्ववारुड मुर्तिया आगरा के किले के मुख द्वार पर लगवायी।
वही कल्लाजी घर घर लोकदेवता के रूप में पूजे गए मेवाड़ महाराणा से वीरता के बदले वीर जयमलजी मेड़तिया के वंशजो को बदनोर का ठिकाना मिला तो पत्ता जी चुण्डावत के वंशज को आमेट का ठिकाना मिला। और प्रताप सिंह मेड़तिया के वंशज को घाणेराव ठिकाना दिया गया।
ये वही जयमलजी मेड़तिया थे, जिन्हीने एक ही झटके में हाथी की सिर काट दिया था।
ये वही वीर जयमलजी मेड़तिया थे,जो महाराणा प्रताप के सैनिक(अस्त्र शस्त्र) गुरु भी थे।
ये वही वीर जयमलजी मेड़तिया थे,जो स्वामिभक्ति को अपनी जान से ज्यादा चाहा अकबर द्वारा मेवाड़ के राजा बनाए जाने के लालच पर भी नही झुके। अकबर की सेना से लड़ते हुए वि.सं. 1624 में हुए जयमलजी ने चितौड़ के तीसरे शाके में वीरगति प्राप्त की।
वीरमदेवजी के पुत्र जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए -: 

01 – सुरताणजी - सुरताणजी के वंसज सुरतानोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
02 – केशवदासजी - केशवदासजी के वंसज केशवदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
03 – गोयंददासजी - गोयंददासजी के वंसज गोयंददासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
         गोयंददासजी के सात पुत्र थे-: 
         01 - राव जगन्नाथजी
         02 - राव सुन्दरदासजी - गोयंददासजी के दूसरे पुत्र राव सुन्दरदासजी थे। राव सुन्दरदासजी को कम दिखाई देने कारण सूरदासजी भी कहते थे। राव सुन्दरदासजी उर्फ सूरदासजी के वंसज सुरदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। राव सुन्दरदासजी उर्फ सूरदासजी जयमलजी के पोते और राव वीरमदेवजी पड़पोते थे।[सुरदासोत मेड़तिया राठौड़ का पूरा विवरण पड़ने के लिए निचे लिखित 31- सुरदासोत मेड़तिया पढ़ें....]  
         03 - सांवलदासजी - सांवलदासजी के दो पुत्र हुए -:             
                 01 - श्यामसिंह - ठिकाना गांव पुनलोता श्यामसिहोत मेड़तिया
                 02 - रघुनाथसिंह - ठिकाना गांव मारोठ, वंसज रघुनाथसिंहोत मेड़तिया राठौड़,  
                       रघुनाथसिंह के आठ पुत्र हुए -:
                          01 - रूपसिंह
                          02 – सबलसिंह - सबलसिंह के पुत्र इंदरसिंह के वंसज इन्दरसिंगहोत   
                                                    मेड़तिया राठौड़ ठिकाना गांव मिण्डा।
                          03 - बिजयसिंह [प्रथम] - के वंसज बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़
                          04 – शेरसिंह शेरसिंह के वंसज शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़
                          05 - हत्तीसिंघ
                          06 - आनंदसिंह
                          07 - किशोरसिंह
                          08 - अमरसिंह
           04 - नेहरखांजी 
           05 - राव भगवानदासजी 
           06 - राव नाथजी [नाथूजी] - के वंसज नाथूसिंघोत मेड़तिया राठौड़
           07 - राव बलरामजी
04 - माधवदासजी माधवदासजी के वंसज माधोदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
05 - कल्याणदास -कल्याणदास के वंसज कल्याणदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
06 - रामदास रामदास के वंसज रामदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
07 - विठलदासजी विठलदासजी के वंसज बिट्ठलदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
08 - मुकुंददासजी मुकुंददासजी के वंसज मुकंददासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी नारायणदासजी के वंसज नारायणदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी द्वारकादासजी के वंसज द्वाराकदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
13 - हरिदासजी हरिदासजी के वंसज हरिदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
14 - शार्दुलसिंह शार्दुलसिंह के वंसज शार्दुलोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
15 - अनोपसिंह अनोपसिंह के वंसज अनोपसीहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
जयमलोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
जयमलजी - वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
03 - ईशरदासोत मेड़तिया राठौड़ -: 
वीरमदेवजी के पुत्र इशरदासजी के वंसज ईशरदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। इशरदासजी; राव दूदाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
इशरदासजी - जयमलजी के भाई ईसरदासजी बड़े बहादुर थे। ईसरदासजी की बहादुरी के चर्चे सुन कर एक बार सम्राट अकबर ने उन्हें अपने दरबार में हाजीर होने का फरमान भेजा,जिसके जबाब में  ईसरदासजी ने उत्तर [शंदेश] भेजा की,वक्त आने पर आप के पास मुजरा करने जरूर आएंगे। चितौड़ के तीसरे शाके में जब केसरिया साफा पहन कर चितौड़ के वीर राजपूत शाही सेना पर टूट पड़े तो बादशाह ने 300 खूंखार खूनी हथियो की सूंड में दुधारी खांडे पकडवा कर महाराणा की सेना पर हमला कर दिया,उस समय बादशाह का मधुकर नामक एक मस्त हाथी का एक हाथ से दांत उखाड़ कर ईसरदासजी ने दुसरे हाथ से जोरदार तलवार से वार किया जिस से बादशाह तो बच गया पर महंत मारा गया। ईसरदासजी ने बादशाह के हाथी से कहा "वीरता के गुणी-ग्राहक अपने मालिक को मेरा मुजरा कहना'' बाद में इस युद्ध में शाही सेना से लड़ते हुए ईसरदासजी वीरगति को प्राप्त हुए।
ईशरदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
इशरदासजी  - वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
04 - जगमलोत मेड़तिया राठौड़  -: 
वीरमदेवजी के पुत्र जगमालजी के वंसज जगमलोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। जगमालजी; राव दूदाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे। जगमलोत मेड़तिया  राठौड़ों के ठिकाने गांव अजमेर जिले में दसानो बड़ों , मसूदा, भांडासर, छापरी बड़ी आदि ठिकाने काने थे। 
जगमालजी के एक पुत्री और दो पुत्र थे -:
     01 - हनवंतसिंह 
     02 - लाडसिंह 
     03 - हँसाकंवर  - हँसाकंवर की शादी अमरसर के राजा राव सुजाजी के पुत्र रायसल  दरबारी  जो  खंडेला का राजा था, के साथ हुयी थी।
हनवंतसिंह [1557-1583] - हनवंतसिंह को ठिकाना गांव मसूदा मिला 26 जिसमें गांव थे। हनवंतसिंह के एक पुत्र हुवा उनका नाम नरसिंहदासजी था। हनवंतसिंह के पुत्र नरसिंहदासजी के सात पुत्र हुए -:
     01 - जुंझारसिंह - ठिकाना गांव मसूदा
     02 - सबलसिंह 
     03 - श्यामसिंह 
     04 - रूपसिंह  
     05 - चतरसिंह  
     06 - दुर्जनसिंह 
     07 – राजसिंह 
जुंझारसिंह  [1623 -1650] – नरसिंहदासजी के पुत्र जुंझारसिंह को ठिकाना गांव मसूदा मिला था तथा जुंझारसिंह के सात पुत्र थे –:
     01 - अजबसिंह - ठिकाना गांव मसूदा
     02 - बलभद्रसिंह 
     03 - कानसिंह 
     04 - कुशासिंह   
     05 - मोखमसिंह 
     06 - उदयसिंह 
     07 - गोपालदासजी 
अजबसिंह - जुंझारसिंह के पुत्र अजबसिंह के छह पुत्र हुए-: 
     01 - मोहनसिंह - ठिकाना गांव मसूदा
     02 - केसरसिंह  - ठिकाना गांव सथाना,लम्बा और नगर 
     03 - बख्तसिंघ  - ठिकाना गांव केसरपुरा, लालावास और अक्रोल 
     04 - जासकरणजी  - ठिकाना गांव सकरानी 
     05 - गिरधरदासजी - ठिकाना गांव जामोला 
     06 - अमरसिंह  - ठिकाना गांव खूंटिया 
मोहनसिंह - अजबसिंह के पुत्र मोहनसिंह के तीन पुत्र हुए- 
     01 - सुल्तानसिंह - ठिकाना गांव मसूदा ,सुल्तानसिंह के एक पुत्र हुवा जयसिंह  
     02 - शेरसिंह - ठिकाना गांव शेरगढ़
     03 - भैरीसालजी - ठिकाना गांव कैलु  फतेहगढ़ 
जयसिंह - सुल्तानसिंह के पुत्र जयसिंह के एक पुत्री और दो पुत्र हुए-
     01 - श्यामसिंह
     02 - सुजानसिंह 
     03 - बाईसा नाम अज्ञात -जो बनेड़ा के तीसरेराजा सुरतानसिंह सिसोदिया [राणावत] के पुत्र राजा सरदारसिंह के साथ हुयी थी।
लाडसिंह - जगमालजी के पुत्र लाडसिंह को ठिकाना गांव बागसुरी मिला था।
               लाडसिंह के पुत्र हुवा, अगरसिंह; 
               अगरसिंह के पुत्र हुवा, नाथूसिंह;
               नाथूसिंह के पुत्र हुवा, नागराजसिंह;
               नागराजसिंह के पुत्र हुवा, दौलतसिंह;
               दौलतसिंह के पुत्र हुवा, सभाईसिंह [सवाईसिंह];
               सभाईसिंह[सवाईसिंह] के पुत्र हुवा, बुधसिंह; 
               सभाईसिंह[सवाईसिंह] के पुत्र बुधसिंह के दो पुत्र हुए-:
                  01 - भवानीसिंह  - ठिकाना गांव बागसुरी
                  02 -अमरसिंह - ठिकाना गांव बुबानिया  
भवानीसिंह - भवानीसिंह; बुधसिंह के पुत्र थे
                      भवानीसिंह के पुत्र हुवा, बृद्धिसिंह;
                      बृद्धिसिंह के पुत्र हुवा, नाहरसिंह;
                      नाहरसिंह के पुत्र हुवा, लक्ष्मणसिंह;
                      लक्ष्मणसिंह के चार पुत्र हुये-

                     01 - ओंकारसिंह
                     02 - नारायणसिंह
                     03 - गोपालसिंह -गोपालसिंह के दो पुत्र हुए-:
                              01 - नरेन्द्रसिंह 
                              02 - पुष्पेन्द्रसिंह 
                     04 - भगवानसिंह - भगवानसिंह के दो पुत्र हुए-:
                              01 - सत्येन्द्रसिंह 
                              02 - राजेन्द्रसिंह
जगमलोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
जगमालजी - वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
05 - चांदावत मेड़तिया राठौड़ -: 
वीरमदेवजी के पुत्र राव चांदाजी के वंसज चांदावत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। चांदाजी; राव दूदाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
राव चंदजी राव चंदजी बलुंदा पहले ठाकुर थे। मेवाड़ में इनके ठिकाने गांव बालून्दा, कुड़की, खामोर आदि ठिकाने थे। चांदाजी की मृत्यु सम्वत 1642 में हुयी थी।
राव चांदाजी के चार पुत्र थे-:
     01 - राव गोपालदासजी - राव गोपालदासजी का पुत्र हुवा उग्रसेनजी 
     02 - राव रामदासजी  
     03 - राव गोविंददासजी - ठिकाना गांव नोखा, ओलादन, सेनणी आदि 
     04 - राव हरिसिंह - ठिकाना गांव चिवली 
चांदावत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव चांदाजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
06 - प्रतापसिंहोत मेड़तिया राठौड़ -: 
राव वीरमदेवजी के पुत्र प्रतापसिंह के वंसज प्रतापसिंहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। प्रतापसिंह; राव दूदाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
वीरमदेवजी के पुत्र प्रतापसिंह के तीन पुत्र थे -:
     01 - गोपालदासजी [1568 -1626] - गोपालदासजी के वंसज गोपीनाथोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाने गांव घानेराव, नडानो बड़ों, फालना, चानोद ख़ास, कोसलाव, बरकानो आदि ठिकाने थे। गोपालदासजी के एक पुत्र हुवा-:
                01 - किशनसिंह [किशनदासजी]
     02 - भगवानदासजी
     03 - हरिदासजी 

प्रतापसिंहोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
प्रतापसिंह - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
07 - मांडनोत मेड़तिया राठौड़ -: 
राव वीरमदेवजी के पुत्र मांडणजी के वंसज मांडनोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। मांडणजी; राव दूदाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे। इनका ठिकाना गांव मेड़ता था। राव मांडणजी सोलंकियों के विरुद्ध लड़ते बरहड़ा के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए । 
मांडनोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव मांडणजी- राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
08 - गोयंददासोत मेड़तिया राठौड़ -: जयमलजी के पुत्र गोयंददासजी के वंसज गोयंददासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाना गांव भावतो [31 गाँवो का ठिकाना] भावतो के आलावा परगना मारोठ,परवतसर नागौर मेड़ता [कुछ गाँवो में] के बहुत से गाँवो में इनकी जागीरी थी। गेड़ी [मेड़ता परगने के तीन गाँव], सरनावड़ो[मेड़ता नागौर व परवतसर परगनों के 6 गाँव] डोभड़ी [मेड़ता परगने के दो गाँव] इटावा ,लालो ,इटावा खिंचिया ,जसवंतपुरा , दुमोई बड़ी , दुमोई खुर्द ,पालडी राजां,डोभड़ी ,खुर्द , रामसियो,खुडी , रामसियो , खुडी,  राथी गाँव , नौरंगपूरा ,भवाद ,पोली , बेहडवो , झाड़ोद आदी एक-एक गाँव के ठिकाने थे। 
गोयंददासजी के सात पुत्र थे-
01 - राव जगन्नाथजी -
02 - सांवलदासजी - के दो पुत्र हुए -
            01 - श्यामसिंह - ठिकाना गांव पुनलोता श्यामसिहोत मेड़तिया
            02 - रघुनाथसिंह - ठिकाना गांव मारोठ, वंसज रघुनाथसिंहोत मेड़तिया राठौड़,
                    रघुनाथसिंह के आठ पुत्र हुए -

                     01 - रूपसिंह
                     02 – सबलसिंह - सबलसिंह के पुत्र इंदरसिंह के वंसज इन्दरसिंगहोत
                                               मेड़तिया राठौड़ ठिकाना गांव मिण्डा।
                     03 - बिजयसिंह [प्रथम] - के वंसज बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़
                     04 – शेरसिंह - के वंसज शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़
                     05 - हत्तीसिंघ
                     06 - आनंदसिंह
                     07 - किशोरसिंह
                     08 - अमरसिंह

03 - नेहरखांजी
04 - राव सुन्दरदासजी
05 - राव भगवानदासजी
06 - राव नाथजी [नाथुसिंह]
- के वंसज नाथूसिंघोत मेड़तिया राठौड़ ठिकाना गांव खरेस।
07 - राव बलरामजी

गोयंददासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
 गोयंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

09 - श्यामसिहोत मेड़तिया -: 
सांवलदासजी के  पुत्र श्यामसिंह के वंसज श्यामसिहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। इनका ठिकाना गांव पुनलोता था। शेखावाटी (राजस्थान ) के बगड़ और अव्गुणा गाँवो में निवास करते हैं तथा नागौर जिले में रेवासा, भूरणी व नावा इनके ठिकाने गांव थे।श्यामसिंह;गोयंददासजी के पोते और जयमलजी के पड़ पोते थे।
सांवलदासजी के दो पुत्र हुए -             
01 - श्यामसिंह -  ठिकाना गांव पुनलोता श्यामसिहोत मेड़तिया
02 - रघुनाथसिंह - ठिकाना गांव मारोठ, वंसज रघुनाथसिंहोत मेड़तिया राठौड़,   
       रघुनाथसिंह के आठ पुत्र हुए-
        01 - रूपसिंह
        02 – सबलसिंह - सबलसिंह के पुत्र इंदरसिंह के वंसज इन्दरसिंगहोत   
                                  मेड़तिया राठौड़ ठिकाना गांव मिण्डा।
        03 - बिजयसिंह [प्रथम] - के वंसज बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़
        04 – शेरसिंह - के वंसज शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़
        05 - हत्तीसिंघ
        06 - आनंदसिंह
        07 - किशोरसिंह
        08 - अमरसिंह
श्यामसिहोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
श्यामसिंह - सांवलदासजी - गोयंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
10 - रघुनाथसिंहोत मेड़तिया राठौड़ -:
सांवलदासजी के पुत्र रघुनाथसिंह के वंसज  रघुनाथसिंहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। इनका ठिकाना गांव  मारोठ था। रघुनाथसिंह ;गोयंददासजी के पोते और जयमलजी के पड़ पोते थे।सांवलदासजी के पुत्र रघुनाथसिंह बड़े वीर थे, ओरंगजेब के समय में इन्होने 1715 वि.में गोड़ों से मारोठ का परगना छीन लिया था। मारोठ परगने में भावतो [13 गाँव का ठिकाना], घाटवो [11 गाँव का ठिकाना],नरोंणपूरा [15 गाँव का ठिकाना], नडवो [6 गाँव का ठिकाना] वासा [7 गाँव का ठिकाना], मगलानो गढ़ों [10 गाँव का ठिकाना], झिलियो [14 गाँव का ठिकाना], सरगोठ [13 गाँव का ठिकाना], कुकडवाली [5 गाँव का ठिकाना], लिचानो [5 गाँव का ठिकाना], जव्दी नगर [7 गाँव का ठिकाना], मीठड़ी [नावां,परवतसर, मारोठ, नागौर व मेड़ता तीनो परगनों के 15 गाँव], करोप [मेड़ता व दौलतपुरा परगना के तीन गाँव], खारठीयो [नावां परगना दो गाँव ], चालुखो [नागौर व दौलतपुरा परगना के दो गाँव], नीबी [दौलतपुरा व नागोर परगना के 6 गाँव], अलतवो [मेड़ता परगना के दो गाँव], डोडीयानो[मेड़ता परगना के 6 गाँव ], पीपलाद[परबतसर परगने के 4गाँव], लापोलाई [मेड़ता व परबतसर परगने के 3 गाँव ], भाद्लिया [मेड़ता ,दौलतपुरा और परबतसर परगना के तीन गाँव], आछोनाइ [मेड़ता परगना के तीन गाँव], लूणवो [मारोठ परगने के 8 गाँव], पांचवा [मारोठ परगने के 13 गाँव ], नीबोद [दौलतपुरा व मारोठ परगने के तीन गाँव]  आदी इनके बड़े ठिकाने थे तथा एक-एक गाँव के कई छोटे ठिकाने थे। 
सांवलदासजी के दो पुत्र हुए -             
01 - श्यामसिंह -  ठिकाना गांव पुनलोता 
02 - रघुनाथसिंह - ठिकाना गांव मारोठ, वंसज रघुनाथसिंहोत मेड़तिया राठौड़,   
       रघुनाथसिंह के आठ पुत्र हुए-
        01 - रूपसिंह
        02 – सबलसिंह - सबलसिंह के पुत्र इंदरसिंह के वंसज इन्दरसिंगहोत   
                                  मेड़तिया राठौड़ ठिकाना गांव मिण्डा।
        03 - बिजयसिंह [प्रथम] - के वंसज बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़
        04 – शेरसिंह - के वंसज शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़
        05 - हत्तीसिंघ
        06 - आनंदसिंह
        07 - किशोरसिंह
        08 - अमरसिंह
रघुनाथसिंहोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
रघुनाथसिंह  - सांवलदासजी - गोयंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
11 - इन्दरसिंगहोत मेड़तिया राठौड़ -:
सबलसिंह के पुत्र इंदरसिंह के वंसज इन्दरसिंगहोत  मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। इंदरसिंह;ठिकाना गांव मारोठ के रघुनाथसिंह के पोते और सांवलदासजी के पड़ पोते थे। इंदरसिंह को ठिकाना गांव मिण्डा मिलाथा।
रघुनाथसिंह के आठ पुत्र हुए-
01 - रूपसिंह
02 – सबलसिंह - सबलसिंह के पुत्र हुए इंदरसिंह। 
                          इंदरसिंह के वंसज इन्दरसिंगहोत मेड़तिया राठौड़ ठिकाना गांव मिण्डा।
03 - बिजयसिंह [प्रथम] - के वंसज बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़
04 – शेरसिंह - के वंसज शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़
05 - हत्तीसिंघ
06 - आनंदसिंह
07 - किशोरसिंह
08 - अमरसिंह
इन्दरसिंगहोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
इंदरसिंह - सबलसिंह - रघुनाथसिंह  - सांवलदासजी - गोयंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
12 - बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़ -: 
ठिकाना गांव मारोठ के रघुनाथसिंह के पुत्र बिजयसिंह [प्रथम] के वंसज बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। बिजयसिंह [प्रथम];सांवलदासजी के पोते और गोयंददासजी पड़ पोते थे। इनका ठिकाना गांव मारोठ था। 
रघुनाथसिंह के आठ पुत्र हुए-
01 - रूपसिंह
02 – सबलसिंह - सबलसिंह के पुत्र हुए इंदरसिंह। 
                          इंदरसिंह के वंसज इन्दरसिंगहोत मेड़तिया राठौड़ ठिकाना गांव मिण्डा।
03 - बिजयसिंह [प्रथम] - के वंसज बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़
04 – शेरसिंह - के वंसज शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़
05 - हत्तीसिंघ
06 - आनंदसिंह
07 - किशोरसिंह
08 - अमरसिंह
बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
बिजयसिंह - रघुनाथसिंह  - सांवलदासजी -- गोयंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
13 - शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़ -: 
ठिकाना गांव मारोठ के रघुनाथसिंह के पुत्र शेरसिंह के वंसज शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। शेरसिंह;सांवलदासजी के पोते और गोयंददासजी पड़ पोते थे। इनका ठिकाना गांव मारोठ था। 
रघुनाथसिंह के आठ पुत्र हुए -
01 - रूपसिंह
02 – सबलसिंह - सबलसिंह के पुत्र हुए इंदरसिंह। 
                         इंदरसिंह के वंसज इन्दरसिंगहोत मेड़तिया राठौड़ ठिकाना गांव मिण्डा।
03 - बिजयसिंह [प्रथम] - के वंसज बिजयसिंघोत मेड़तिया राठौड़
04 – शेरसिंह - के वंसज शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़
05 - हत्तीसिंघ
06 - आनंदसिंह
07 - किशोरसिंह
08 - अमरसिंह
शेरसिंहोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
शेरसिंह - रघुनाथसिंह  - सांवलदासजी -- गोयंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
14 - नाथूसिंघोत मेड़तिया राठौड़ -:
 राव गोयंददासजी के पुत्र राव नाथजी [नाथूजी] के वंसज नाथूसिंघोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। राव नाथजी [नाथूजी];जयमलजी के पोते और राव वीरमदेवजी के पड़ पोते थे।
गोयंददासजी के सात पुत्र थे-
01 - राव जगन्नाथजी -
02 - सांवलदासजी
03 - नेहरखांजी
04 - राव सुन्दरदासजी
05 - राव भगवानदासजी
06 - राव नाथजी [नाथूजी]
- के वंसज नाथूसिंघोत मेड़तिया राठौड़
07 - राव बलरामजी
नाथूसिंघोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
नाथूजी - गोयंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
15 - माधोदासोत मेड़तिया राठौड़ -:
 जयमलजी के पुत्र माधवदासजी के वंसज माधोदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।माधवदासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे।
माधोदासजी बड़े वीर थे इन्होनें कई युद्धों में भाग लिया और वि.सं .1656 में मुगलों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। मेड़ता परगने में रीया इनका मुख्या ठिकाना था। इनके अलावा मेड़ता परगने में बीजाथल [तीन गाँव का ठिकाना], चीखरणीयो बड़ो [2 गाँव का ठिकाना], चापारुण [पांच गाँव का ठिकाना], आलणीयावास [चार गाँव का ठिकाना], बलोली [2 गाँव का ठिकाना],चानणी बड़ी [2 गाँव का ठिकाना] ,धीरड [दो गाँव का ठिकाना] तथा जाटी मेडास ,ईड्वो,धोलेराव ,पोलास,गोडेतिया,नैणीयो ,गोठडो,सुरियाल,भैसडो,कीतलसर ,बिखरणीयो ,भाडली बुताटीबलोली,चुई,डोभड़ी ,बरसणु ,लंगोड़,आदी एक-एक गाँव के ठिकाने थे। बीकानेर राज्य में खारी गाँव माधोदासोत मेड़तिया राठौड़ों का एक छोटा सा ठिकाना था। चूरू जिले के भैंसली गाँव में भी माधोदासोत मेड़तिया राठौड़ रहते है।
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए-
01 – सुरताणजी
02 – केशवदासजी
03 – गोयंददासजी
04 - माधवदासजी
- के वंसज माधोदासोत मेड़तिया राठौड़
05 - कल्याणदासजी
06 - रामदासजी
07 - विठलदासजी
08 - मुकुंददासजी
09 - श्यामदासजी
10 - नारायणदासजी
11 - नरसिंहदासजी
12 - द्वारकादासजी
13 - हरिदासजी
14 - शार्दुलसिंह
15 - अनोपसिंह
16 - गुमानकँवर
17 - गुलाबकंवर
माधोदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
माधवदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
16 - कल्याणदासोत मेड़तिया राठौड़ -:
जयमलजी के पुत्र कल्याणदासजी के वंसज कल्याणदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।कल्याणदासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे। कल्याणदासजी को अपने भाई सुरताणजी से रायण की जागीर मिली थी, तथा मोटे राजा उदयसिंह की और से कल्याणदासजी को वि.1652 में खेरवा का पट्टा मिला था। इनके ठिकाने गांव कालणा , बरकाना,कला रो बास आदी थे। जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए-
01 – सुरताणजी
02 – केशवदासजी
03 – गोयंददासजी
04 - माधवदासजी 

05 - कल्याणदासजी 
- के वंसज  कल्याणदासोत मेड़तिया राठौड़ 
06 - रामदासजी 
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी 
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी 
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
 
कल्याणदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
कल्याणदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
17 - रामदासोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र रामदासजी के वंसज रामदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। रामदासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे।
रामदासजी हल्दीघाटी के युद्ध (ई.1576) में वीरगति को प्राप्त हुए। इनके वंशज मेवाड़ क्षेत्र रहतें में हैं।
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी 
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी  
06 - रामदासजी - के वंसज रामदासोत मेड़तिया राठौड़
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
रामदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
रामदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
18 - बिट्ठलदासोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र विठलदासजी के वंसज बिट्ठलदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। विठलदासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे। इनका नीबी खास [ दो गाँवो का ठिकाना]  इनके आलावा लूणसरा ,इग्योर  आदी मारवाड़ में इनके ठिकाने थे। बिट्ठलदास के पुत्र मनोहरदासजी मेवाड़ में जाकर रहे थे वहां   दांतड़ा इनका ठिकाना था।
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी 
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी 
06 - रामदासजी  
07 - विठलदासजी - के वंसज बिट्ठलदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
बिट्ठलदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
विठलदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
19 - मुकंददासोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र मुकुंददासजी के वंसज मुकंददासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। मुकुंददासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे। जयमलजी के चितोड़ में 1624 वि.में वीरगति पाने पर उदयसिंह ने मुकुंददासजी को गढ़बोर की जागीरी दी और जब मुगलों का बदनोर से अधिकार हट गया तब इन्हें बदनोर का ठिकाना मिला।जब परवेज ने वि.सं .1663 में मेड़ता पर आक्रमण किया उस समय मुकुंददासजी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। मेवाड़ में बदनोर के आलावा रूपहेली ,डाबला,नीबाहेड़ा,जगपुरा आदी इनके ठिकाने गांव थे।
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी 
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी 
06 - रामदासजी  
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी - के वंसज मुकंददासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
मुकंददासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मुकुंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
20 - नारायणदासोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र नारायणदासजी के वंसज नारायणदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। नारायणदासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे। 
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी 
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी 
06 - रामदासजी  
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी - के वंसज नारायणदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
नारायणदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
नारायणदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
21 - द्वाराकदासोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र द्वारकादासजी के वंसज द्वाराकदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। द्वारकादासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे। द्वारकादासजी अकबर की सेवा में रहे और वि.सं.1655 में वे शाही सेना की और से लड़ते हुए दक्षिण में बीद नामक स्थान पर काम आये। इनका मुख्य ठिकाना गांव बछवारि था। 
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी 
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी 
06 - रामदासजी  
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी - के वंसज द्वाराकदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
द्वाराकदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
द्वारकादासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
22 - हरिदासोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र हरिदासजी के वंसज हरिदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। हरिदासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे। 
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी 
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी 
06 - रामदासजी  
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी - के वंसज हरिदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
हरिदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
हरिदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
23 - शार्दुलोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र शार्दुलसिंह के वंसज शार्दुलोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। शार्दुलसिंह;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे। मेवाड़ में इनका ठिकाना गांव धोली था।
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी 
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी 
06 - रामदासजी  
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह - के वंसज शार्दुलोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
शार्दुलोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
शार्दुलसिंह - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
24 - अनोपसीहोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र अनोपसिंह के वंसज अनोपसीहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।अनोपसिंह;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे। इनका ठिकाना गांव चाणोद [26 गांव का ठिकाना],जिला पाली राजस्थान इनका मुख्य ठिकाना था। प्रतापसिंह उदयपुर के महाराजा महाराणा सांगा के दोहिते थे, महाराणा सांगा ने प्रतापसिंह को 1609 में चाणोद गांव का पट्टा दिया था। अनोपसिंह चाणोद के पहले ठाकुर थे, चाणोद ठिकाने की स्थापना सम्वत 1764.में [1708 ई.] की गयी थी। 
उसके बाद 1802 में ठाकुर बिशनसिंह चाणोद की गद्दी पर बैठे और उनके द्वारा 1829 में बनाया गया तालाब आज भी चाणोद में मौजूद है।बिशनसिंह की मृत्यु 1847  में हुयी थी। चाणोद ठिकाने को उस समय प्रथम श्रेणी के न्यायिक अधिकार प्राप्त थे और निजी पुलिस भी थी। यहां की जागीरदारी में खीमेल-केसोलाव तक का पत्ता आता था जब देश आजाद हुवा तो 1954 ई.में चाणोद ठिकाने का अधिग्रहण कर लिया गया। जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी 
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी 
06 - रामदासजी  
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह - के वंसज अनोपसीहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
अनोपसीहोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
अनोपसिंह - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
25 - सुरतानोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमलजी के पुत्र सुरताणजी के वंसज सुरतानोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। सुरताणजी ;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पड़ पोते थे।
वि.सं. 1624 में हुए चितोड़ के तीसरे शाके में जयमलजी वीरगति को प्राप्त हुए और उनके बड़े पुत्र सुरताणजी महाराणा उदयसिंह की सेवा में हाजिर हुए। बदनोर पर तो अकबर का अधिकार हो गया अतः उदयसिंह ने सुरतानजी को गढ़बोर गाँव प्रदान किया इसके बाद  सुरतानजी  मेड़ता प्राप्त करने के लिए अकबर के पास गए और उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर अकबर ने उन्हें मेड़ता दे दिया। सुरतानजी के दो पुत्र भोपतजी व भाणजी  उग्रसेनजी  [बांवाड़ा के शासक] के समय बाँसवाड़ा राज्य में चले गए तथा एक पुत्र हरिरामजी डूंगरपुर राज्य में जा रहे, मारवाड़ में सुर्तानोतों के लवणों [2 गाँव का ठिकाना], गूलर[ पांच गाँव का ठिकाना] रोहिणी [चार गाँव का ठिकाना] , बाजुवास[दो गाँव का ठिकाना]  जावलो[तीन गाँव का ठिकाना]  जालरो [ सात गाँव का ठिकाना]  भटवरी [पांच गाँव का ठिकाना]  इनके अलावा जझोलो, सील भखरी,किशनपुरा आदी एक-एक  गाँव के ठिकाने थे।
जयमलजी के दो पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए- 
01 – सुरताणजी - के वंसज सुरतानोत मेड़तिया राठौड़
02 – केशवदासजी 
03 – गोयंददासजी 
04 - माधवदासजी 
05 - कल्याणदासजी  
06 - रामदासजी 
07 - विठलदासजी 
08 - मुकुंददासजी 
09 - श्यामदासजी  
10 - नारायणदासजी 
11 - नरसिंहदासजी  
12 - द्वारकादासजी 
13 - हरिदासजी 
14 - शार्दुलसिंह 
15 - अनोपसिंह 
16 - गुमानकँवर 
17 - गुलाबकंवर
जयमलजी के पुत्र सुरताणजी के सात पुत्र हुए-:
    01 - बलभद्रजी
    02 - गोपालदासजी -
गोपालदासजी का पुत्र हुवा, गोरधनदासजी
                 गोरधनदासजी का पुत्र हुवा, शिम्भूदासजी;
                 शिम्भूदासजी का पुत्र हुवा, भैरुदासजी;
                 भैरुदासजी का पुत्र हुवा,केसरीसिंह;
केसरीसिंह का पुत्र हुवा,नवलसिंह
   03 - जसवंतसिंह
   04 - किसनसिंह
   05 - भूपतजी
   06 - भानजी -
भाणजी बाँसवाड़ा राज्य के शासक उग्रसेनजी के पास चले गए और                                     भाणजी कापुत्र हरिरामजी डूंगरपुर राज्य में जाकर रहे । मारवाड़ में                                     सुरतानोत मेड़तिया राठौड़ों के लवणों [दो-गाँव],गूलर [पांच गाँव] रोहिणी                           [चार गाँव] बाजुवास [दो गाँव] जावलो [तीन गाँव] जालरो [सात गाँव]                                 भटवरी [पांच गाँव] आदि ठिकाने थे,इनके अलावा जझोलो, सील                                       भखरी, किशनपुरा आदी ऐक -ऐक गाँवके ठिकाने भी थे।
   07 - हरिरामजी
सुरतानोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सुरताणजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
26 - केशवदासोत मेड़तिया राठौड़ -: 
जयमल के पुत्र केशवदासजी के वंसज केशवदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। केशवदासजी;राव वीरमदेवजी के पोते और राव दूदाजी के पद पोते थे। 
अकबर ने केशवदासजी को आधा मेड़ता दिया था, वि.सं. 1655 में गोपालदास के साथ शाही सेना के साथ पक्ष में लड़ते हुए बीड़ की लड़ाई में वीरगति प्राप्त की। बाद में मेड़ता जोधपुर के राजा सूरसिंह को दे दिया गया। केशवदासजी को 22 गाँवो सहित ठीकसंस गांव केड मिला था। इन के ठिकाने गांव माणाणो, बडू, चितवो, केकिद, कालवो, मामरोली, सबलपुर, बूड़सू, बोरावड़, बरनेउ, खोजवास आदि थे। केशवदासजी के दुसरे पुत्र गिरधरदासजी को परबतसर का पट्टा मिला। परबतसर के बाद में केशवदास  मेड़तिया राठौड़ों का ठिकाना बदु तेरह गाँवो का ठिकाना था। इसके अलावा ठिकाना सबेलपुर [7गाँव], बोडावड[चार गाँव], बुडसु [नो गाँव], मडोली[दो गाँव], बरनेल[दो गाँव] इसके अलावा ठिकाना गांव बणाग़नो ,चितावो,उंचेरियों,लाडोली ,कालवो आदी एक गाँव के ठिकाने थे। 
केशवदासजी के दो पुत्री और एक पुत्र था-:
  01 - पहली पुत्री की शादी 1581 में दिल्ली के बादशाह अकबर साथ उसकी उन्नीसवीं पत्नी के रूप में हुयी।
  02 - दूसरी पुत्री की शादी 1591 में दिल्ली के बादशाह जहांगीर साथ उसकी दसवीं पत्नी के रूप में हुयी।
  03 - राव गिरधरदासजी
          गिरधरदासजी के पुत्र हुए, गदाधरजी;
          गदाधरजी के पुत्र हुए, श्यामसिंह;
          श्यामसिंह के दो पुत्र हुए -
               01 - पिरथीसिंह  
                           पिरथीसिंह - पिरथीसिंह के दो पुत्र हुए-:
                            01 - रामसिंह
                            02 - भादरसिंह  [बहादुरसिंह]
                                     भादरसिंह का पुत्र हुवा,हिन्दुसिंह; 
                                     हिन्दुसिंह का पुत्र हुवा,बाघसिंह;
                                     बाघसिंह का पुत्र हुवा,सुरनतसिंह;
                                     सुरनतसिंह का पुत्र हुवा, हमीरसिंह [अमानसिंह]
               02 - अखेसिंह  - अखेसिंह के वंशज अखेसिंहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं
                       अखेसिंह - ठिकाना टाँगला और कुकरडा, अखेसिंह के तीन पुत्र हुए-:
                           01- अमरसिंह - अखेसिंह के पुत्र अमरसिंह के वंसज अमरसिहोत                                                               मेड़तिया  राठौड़ कह लाये हैं। 
                           02-सूरतसिंह - सूरतसिंह का पुत्र हुवा, दौलतसिंह;
                                                 दौलतसिंह का पुत्र हुवा, सादुलसिंह [शार्दुलसिंह]
                                                 सादुलसिंह का पुत्र हुवा,हुकमसिंह;
                                                 हुकमसिंह का पुत्र हुवा,सिरदारसिंह
                                                 सिरदारसिंह ठिकाना गांव टाँगला [नागौर जिले में]                                                           एकलड़ी  ताज़ीम।
                           03 - गजसिंह - गजसिंहका का पुत्र हुवा,दानसिंह; 
                                                 दानसिंह का पुत्र हुवा,केसरीसिंह
                                                 केसरीसिंह का पुत्र हुवा,हनवंतसिंह
                                                 हनवंतसिंह का पुत्र हुवा, ज्ञानसिंह ठिकाना गांव कुकरडा                                                   और कुकरदो।   
केशवदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
केशवदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
27 - अखेसिंहोत मेड़तिया राठौड़ -: 
श्यामसिंह के पुत्र अखेसिंह के वंशज अखेसिंहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। अखेसिंह;गदाधरजी के पोते और गिरधरदासजी के पड़ पोते थे। बुड़सु ,खीदरपुर कुकडदो ,तथा चाँवठिया इनके मुख्या ठिकाने थे। इनके अतिरिक्त टागलो ,खोजावास ,बीदयाद,डोडवाडो,जूसरियो ,तोसीनो आदी छोटे -छोटे ठिकाने थे। चिडालिया नागौर से दो भाई देवीसिंह व डूंगरसिंह घोड़ों पर सवार हैदराबाद पहुंचे जिन में से देवीसिंह वहीँ पर पिछड़ गए थे डूंगर सिंह ने अपनी वीरता से हैदराबाद के निजाम को प्रसन्न किया निजाम ने उन्हें सर्फे खास व नज्म की दो उपाधियाँ दी थी।  एक हाथी, 100 घोड़े और 100 सिपाही रखने की इजाजत भी दी। हैदराबाद में राठोड़ों का बेड़ा स्थापित करने के लिए जगह भी दी थी।
केशवदासजी के दो पुत्री और एक पुत्र था-:
  01 - पहली पुत्री की शादी 1581 में दिल्ली के बादशाह अकबर साथ उसकी उन्नीसवीं पत्नी के रूप में हुयी।
  02 - दूसरी पुत्री की शादी 1591 में दिल्ली के बादशाह जहांगीर साथ उसकी दसवीं पत्नी के रूप में हुयी।
  03 - राव गिरधरदासजी
          गिरधरदासजी के पुत्र हुए, गदाधरजी;
          गदाधरजी के पुत्र हुए, श्यामसिंह;
          श्यामसिंह के दो पुत्र हुए -
               01 - पिरथीसिंह  
                           पिरथीसिंह - पिरथीसिंह के दो पुत्र हुए-:
                            01 - रामसिंह
                            02 - भादरसिंह  [बहादुरसिंह]
                                     भादरसिंह का पुत्र हुवा,हिन्दुसिंह; 
                                     हिन्दुसिंह का पुत्र हुवा,बाघसिंह;
                                     बाघसिंह का पुत्र हुवा,सुरनतसिंह;
                                     सुरनतसिंह का पुत्र हुवा, हमीरसिंह [अमानसिंह]
               02 - अखेसिंह  - अखेसिंह के वंशज अखेसिंहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं
                       अखेसिंह - ठिकाना टाँगला और कुकरडा, अखेसिंह के तीन पुत्र हुए-:
                           01- अमरसिंह - अखेसिंह के पुत्र अमरसिंह के वंसज अमरसिहोत                                                               मेड़तिया  राठौड़ कह लाये हैं। 
                           02-सूरतसिंह - सूरतसिंह का पुत्र हुवा, दौलतसिंह;
                                                 दौलतसिंह का पुत्र हुवा, सादुलसिंह [शार्दुलसिंह]
                                                 सादुलसिंह का पुत्र हुवा,हुकमसिंह;
                                                 हुकमसिंह का पुत्र हुवा,सिरदारसिंह
                                                 सिरदारसिंह ठिकाना गांव टाँगला [नागौर जिले में]                                                            एकलड़ी ताज़ीम।
                           03 - गजसिंह - गजसिंहका का पुत्र हुवा,दानसिंह; 
                                                 दानसिंह का पुत्र हुवा,केसरीसिंह
                                                 केसरीसिंह का पुत्र हुवा,हनवंतसिंह
                                                 हनवंतसिंह का पुत्र हुवा, ज्ञानसिंह ठिकाना गांव कुकरडा                                                   और  कुकरदो।   
अखेसिंहोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
अखेसिंह -  श्यामसिंह - गदाधरजी -  गिरधरदासजी - केशवदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
28 -अमरसिहोत मेड़तिया राठौड़ -: 
अखेसिंह के पुत्र अमरसिंह के वंसज अमरसिहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। अमरसिंह;श्यामसिंह के पोते और गदाधरजी के पड़ पोते थे।
अखेसिंह के बड़े पुत्र अमरसिंह के वंशजों का ठिकाना गांव मैनाणा [सात गाँवो का मुख्या ठिकाना] था । इसके आलावा रोडू विरड़ा [6 गाँव] तथा डासानो खुर्द व टांगलो एक-एक गाँव के ठिकाने थे।
केशवदासजी के दो पुत्री और एक पुत्र था-:
  01 - पहली पुत्री की शादी 1581 में दिल्ली के बादशाह अकबर साथ उसकी उन्नीसवीं पत्नी के रूप में हुयी।
  02 - दूसरी पुत्री की शादी 1591 में दिल्ली के बादशाह जहांगीर साथ उसकी दसवीं पत्नी के रूप में हुयी।
  03 - राव गिरधरदासजी
          गिरधरदासजी के पुत्र हुए, गदाधरजी;
          गदाधरजी के पुत्र हुए, श्यामसिंह;
          श्यामसिंह के दो पुत्र हुए -
               01 - पिरथीसिंह  
                           पिरथीसिंह - पिरथीसिंह के दो पुत्र हुए-:
                            01 - रामसिंह
                            02 - भादरसिंह  [बहादुरसिंह]
                                     भादरसिंह का पुत्र हुवा,हिन्दुसिंह; 
                                     हिन्दुसिंह का पुत्र हुवा,बाघसिंह;
                                     बाघसिंह का पुत्र हुवा,सुरनतसिंह;
                                     सुरनतसिंह का पुत्र हुवा, हमीरसिंह [अमानसिंह]
               02 - अखेसिंह  - अखेसिंह के वंशज अखेसिंहोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं
                       अखेसिंह - ठिकाना टाँगला और कुकरडा, अखेसिंह के तीन पुत्र हुए-:
                           01- अमरसिंह - अखेसिंह के पुत्र अमरसिंह के वंसज अमरसिहोत मेड़तिया  राठौड़ कह लाये हैं। 
                           02-सूरतसिंह - सूरतसिंह का पुत्र हुवा, दौलतसिंह;
                                                 दौलतसिंह का पुत्र हुवा, सादुलसिंह [शार्दुलसिंह]
                                                 सादुलसिंह का पुत्र हुवा,हुकमसिंह;
                                                 हुकमसिंह का पुत्र हुवा,सिरदारसिंह
                                                 सिरदारसिंह ठिकाना गांव टाँगला [नागौर जिले में] एकलड़ी ताज़ीम।
                           03 - गजसिंह - गजसिंहका का पुत्र हुवा,दानसिंह; 
                                                 दानसिंह का पुत्र हुवा,केसरीसिंह
                                                 केसरीसिंह का पुत्र हुवा,हनवंतसिंह
                                                 हनवंतसिंह का पुत्र हुवा, ज्ञानसिंह ठिकाना गांव कुकरडा और कुकरदो।   
अमरसिहोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
अमरसिंह - अखेसिंह -  श्यामसिंह - गदाधरजी -  गिरधरदासजी - केशवदासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
29- गोपीनाथोत मेड़तिया राठौड़ -:
दुर्जनसिंह [प्रथम] के पुत्र गोपीनाथजी के वंसज गोपीनाथोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। इन का मुख्य ठिकाना घानेराव था जिसमें 37 गांव थे घानेराव के अलावा नडानो बड़ों, फालना, चानोद ख़ास, कोसलाव, बरकानो आदि ठिकाने थे। वर्तमान में घानेराव गांव भारत देश के राज्य राजस्थान के जिले पाली की तहसील देसूरी में स्थित है ।
घानेराव ठिकाने की नीव 1552 में मेड़ता के राव वीरमदेवजी के पुत्र प्रतापसिंह ने राखी थी ।प्रतापसिंह [552/1568] का पुत्र हुवा गोपालदासजी [1568/1626]
गोपालदासजी के एक पुत्र हुवा किशनसिंह [किशनदासजी]   
किशनसिंह[1626/1649] [किशनदासजी] के पुत्र हुवा, दुर्जनसिंह[1649/1675]
दुर्जनसिंह के पुत्र हुवा गोपीनाथजी [1675/1704];
गोपीनाथजी के चार पुत्र हुए -:
01 - सूरतसिंह [1704/1714] - सूरतसिंह पिता की गद्दी घानेराव पर रहे।
        सूरतसिंह का पुत्र हुवा प्रतापसिंह [द्वितीय] [1714/1720];
        प्रतापसिंह [द्वितीय] का पुत्र हुवा पदमसिंह[1720/1742] ; 
        पदमसिंह का पुत्र हुवा वीरमदेवजी [1743/1778]
        वीरमदेवजी के एक पुत्री और एक पुत्र हुवा-
            01 - दुर्जनसिंह[द्वितीय] - दुर्जनसिंह[द्वितीय] 1778/1799के दो पुत्र हुए -:
                    01 - हमीरसिंह 
                    02 - अजीतसिंह
             02 - बाईसा.....[नाम ....]  जिसकी शादी बनेड़ा के राजा रायसिंह के पुत्र हमीरसिंह  
                     सिसोदिया  [राणावत]के साथ उनकी पहली रानी के रूप में हुयी।
02 - अनोपसिंह  - अनोपसिंह को ठिकाना  चाणोदमिला जिसमें 26 गांव थे 
03 - अभयसिंह  - अभयसिंह को ठिकाना गांव  नारलाई मिला था और बाद में बरकाना [जिला पाली राजस्थान] व फालना [जिला पाली राजस्थान]जागीर मिली।गोडवाड़ परगना पाली में ठिकाना फालना नई नींव 18वीं सदी में राखी गयी थी जब नारलाई के ठाकुर पृथ्वीसिंह के बड़े पुत्र रणजीतसिंह को बरकाना ’ठिकाना मिला था। और पृथ्वीसिंह के दूसरे पुत्र ठाकुर बख्तवारसिंह को नारलाई ठिकाने की जगह ठिकाना फालना मिला था। गोपीनाथ जी के बड़े पुत्र सूरतसिंह को  became the Thakur of ठिकाना घाणेराव मिला था।  
04 - हिम्मतसिंह  - हिम्मतसिंह को ठिकाना गांव सिंदरली मिला था।
गोपीनाथोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
गोपीनाथजी - दुर्जनसिंह [प्रथम] - किशनसिंह [किशनदासजी] - गोपालदासजी - प्रतापसिंह [प्रथम] - राव  वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
30 - संवतसिंघोत मेड़तिया राठौड़ -:
बिजयसिंह [प्रथम] के पुत्र संवतसिंह [सांवतगढ़] के वंसज संवतसिंघोत मेड़तिया राठौड़' कहलाये हैं।
रघुनाथसिंह के पुत्र बिजयसिंह [प्रथम] के सात पुत्र थे-
01 - पदमसिंह - जागीर सरगोठ 
02 - सुखसिंह -  जागीर देवला 
03 - गोरधनसिंह [मोहनसिंह] - जागीर कुकनवाली 
                                             गोरधनसिंह का पुत्र हुवा, हिन्दुसिंह; 
                                             हिन्दुसिंह का पुत्र हुवा, नवलसिंह;
                                             नवलसिंह का पुत्र हुवा, हरनाथसिंह;
                                             हरनाथसिंह का पुत्र हुवा, हुवाचतरसिंह ,
                                            चतरसिंह का पुत्र हुवा, पैपसिंह  [पैमपसिंह]
04 - बादलसिंह [बहादुरसिंह] - नगर [जबडीनगर ,सांभर के पास] 
                                             बादलसिंह [बहादुरसिंह] के तीन पुत्र हुए -:
                                           01 - अर्जुनसिंह 
                                                   अर्जुनसिंह का पुत्र हुवा,मंगलसिंह;
                                                   मंगलसिंह का पुत्र हुवा,हनवंतसिंह;
                                                   हनवंतसिंह का पुत्र हुवा, हिमतसिंह;
                                                   हिमतसिंह का पुत्र हुवा, हुवा,भैरूसिंह;
                                                  भैरूसिंह का पुत्र हुवा,रामसिंह;
                                           02 - बक्सीरामसिंह 
                                                   बक्सीरामसिंह के पुत्र हुए, कनीरामजी;
                                                   कनीरामजी के पुत्र हुए, शिवनाथसिंह;
                                                   शिवनाथसिंह के पुत्र हुए, अमानसिंह;
                                                  अमानसिंह के पुत्र हुए,केशूसिंह;
                                           03 - भरतसिंह - जागीर देवली  
                                                   भरतसिंह के पुत्र हुए,तेजसिंह;
                                                   तेजसिंह के पुत्र हुए,जीवनसिंह;
                                                   जीवनसिंह के पुत्र हुए, शंकरसिंह;
05 - सांवतसिंह - संवतसिंह [सांवतगढ़] के वंसज संवतसिंघोत मेड़तिया राठौड़' 
        संवतसिंह के तीन पुत्र थे-
        01 - जसवंतसिंह - सवंतसिंह के दो पुत्र हुए-
                                    01 - पहाड़सिंह
                                    02 - दुर्जनसालसिंह 
        02 - सूरसिंह [सूर्य सिंह] -
                                   सूरसिंह का पुत्र हुवा, इसरीसिंह  [जिलिया जूनियर];
                                   इसरीसिंह का पुत्र हुवा, उदयभानसिंह;   
                                   उदयभानसिंह का पुत्र हुवा, हनवंतसिंह;
                                   हनवंतसिंह का पुत्र हुवा, शिवसिंह;
        03 - भवानीसिंह -
                              भवानीसिंह के पुत्र हुए, डूंगरसिंह;
                              डूंगरसिंह [पाना भवानीपुरा] के पुत्र हुए, प्रतापसिंह; 
                              प्रतापसिंह के पुत्र हुए, मोहनसिंह;
                              मोहनसिंह के पुत्र हुए, सवाईसिंह
06 - लालसिंह - जागीर नावा [सांभर के पास] 
07 - फतेहसिंह - जागीर लिचना, फतेहसिंह के दो पुत्र हुए-
01 - नाहरसिंह - नाहरसिंह के दो पुत्र हुए-
                         01-सुरतानसिंह - सुरतानसिंह के पुत्र हुए,जवानसिंह;
                                                   जवानसिंह के दो पुत्र पुत्र हुए-
                                                   1.शिवदानसिंह - का पुत्र हुवा अमानसिंह
                                                   2. दीनसिंह - [ठिकाना गांव हबसपुरा] के पुत्र हुए,  
                                                       पृथ्वीसिंह; पृथ्वीसिंह [ठिकाना गांव हबसपुरा]  
                                                       के पुत्र हुए, रिड़मलसिंह;
                        02-किशनसिंह - किशनसिंह के दो पुत्र हुए -
                                                   1.बनेसिंह - के पुत्र हुए शोभसिंह 
                                                   2.सोनसिंह -  [ठिकाना गांव नथवारी] 
                                                      सोनसिंह के पुत्र हुए,प्रतापसिंह; 
                                                      प्रतापसिंह के पुत्र हुए,बलवंतसिंह
02 - दुलेसिंह - नाहरसिंह के पुत्र 
संवतसिंघोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
संवतसिंह - बिजयसिंह [प्रथम] – रघुनाथसिंह – सांवलदासजी – गोयंददासजी – जयमल – वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी  - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
31- सुरदासोत मेड़तिया
गोयंददासजी के दूसरे पुत्र राव सुन्दरदासजी थे। राव सुन्दरदासजी को कम दिखाई देने कारण सूरदासजी भी कहते थे। राव सुन्दरदासजी उर्फ सूरदासजी के वंसज सुरदासोत मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं। राव सुन्दरदासजी उर्फ सूरदासजी जयमलजी के पोते और राव वीरमदेवजी पड़पोते थे।
सुरदासोत मेड़तिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:  
राव सुन्दरदासजी उर्फ सूरदासजी - गोयंददासजी - जयमलजी - राव वीरमदेवजी - राव दूदाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी [मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज
राव सुन्दरदासजी - राव सुन्दरदासजी उर्फ सूरदासजी को 1687में गाँव (बिलुकासेड़ा) वर्तमान नाम गाँव
Biloo (बिलू ) तहसील मकराना, जिला नागौर।राव सुन्दरदासजी उर्फ  सूरदासजी तीन पुत्र हुए -: 
    01 - कल्याणदासजी उर्फ कल्याणसिंह
    02 - मनोहरदासजी उर्फ मनोहरसिंह
    03 - हरनाथसिंह
हरनाथसिंह - राव सुन्दरदासजी उर्फ सूरदासजी के तीसरे पुत्र हरनाथसिंह के नौ पुत्र हुए -: 
    01- मोहकमसिंह
    02- कुशलसिंह
    03- सेजेसिंह उर्फ सहेजेसिंह
    04- अमरसिंह
    05- किलाणसिंह उर्फ कल्याणसिंह
    06- फतेहसिंह 
    07- किशनसिंह
    08- करणसिंह
    09- रतनसिंह  
मोहकमसिंह - राव हरनाथसिंह के सबसे बड़े पुत्र मोहकमसिंह के पांच पुत्र हुए थे।जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
01- उदयसिंह
02- थानसिंह
03- इंदुसिंह (इन्द्रसिंह)
04- भोजराजसिंह
05- शालसिंह
थानसिंह- मोहकमसिंह के दूसरे पुत्र थानसिंह थे। थानसिंह के तीन पुत्र हुए थे।जिनके नाम इसप्रकार हैं -: 
    01- शम्भूसिंह
    02- दुर्जनसिंह
    03- सरतानसिंह
दुर्जनसिंह- थानसिंह के दूसरे पुत्र दुर्जनसिंह थे। दुर्जनसिंह के चार पुत्र  हुए थे। जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
    01- रूपसिंह
    02- गोपालसिंह
    03- प्रेमसिंह
    04- रतनसिंह
रूपसिंह:- दुर्जनसिंह के सबसे बड़े पुत्र रूपसिंह थे। रूपसिंह के तीन पुत्र हुए जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
    01- रघुनाथसिंह
    02- फ़तेहसिंह
    03- बहादुरसिंह
बहादुरसिंह- रूपसिंह के तीसरे पुत्र बहादुरसिंह थे। बहादुरसिंह विक्रम संवत 1813 में खींवसर से देव गांव (देवनगर) जिला नागौर में गये। रूपसिंह के पुत्र बहादुरसिंह के चार पुत्र  हुए थे, जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
    01 संग्रामसिंह
    02- जुजारसिंह (जुझारसिंह)
    03- सोहनसिंह उर्फ दूलेसिंह (सोहनसिंह को दूलेसिंह के नाम से भी जाना पहचाना                     जाता था)
    04- प्रतापसिंह
सोहनसिंह उर्फ दूलेसिंह- बहादुरसिंह के तीसरे पुत्र सोहनसिंह उर्फ दूलेसिंह संवत 1889 में देव गांव ( देवनगर) जिला नागौर से शेखावाटी क्षेत्र के जिले झुंझुनू (राजस्थान) के नवलगढ में आ गये थे । सोहनसिंह उर्फ  दूलेसिंह के चार पुत्र हुए , जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
    01- सुजानसिंह
    02- हमीरसिंह
    03- इन्द्रसिंह
    04- बालसिंह
हमीरसिंह- सोहनसिंह उर्फ दूलेसिंह के दूसरे पुत्र हमीरसिंह थे। हमीरसिंह के तीन पुत्र हुए, जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
    01- जयसिंह
    02- गडिसिंह उर्फ चिमनसिंह  
    03- सैतानसिंह 
गडिसिंह उर्फ चिमनसिंह - हमीरसिंह के दूसरे पुत्र  गडिसिंह उर्फ चिमनसिंह थे। गडिसिंह उर्फ चिमनसिंह के दो पुत्र हुए थे, जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
    01- शिवदानसिंह (शिवदानसिंह को भंवरसिंह के नाम से भी जाना पहचाना जाता था)
    02- चतरसिंह (चतरसिंह को अमरसिंह के नाम से भी जाना पहचाना जाता था)
चतरसिंह उर्फ अमरसिंह- गडिसिंह उर्फ चिमनसिंह के दूसरे पुत्र चतरसिंह उर्फ अमरसिंह के तीन पुत्र हुए थे, जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
    01- कालूसिंह
    02- मंगलसिंह
    03- गणपतसिंह
गणपतसिंह- चतरसिंह उर्फ अमरसिंह के तीसरे पुत्र गणपतसिंह थे, गणपतसिंह के तीन पुत्र हुए, जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
फोटो: श्री गणपतसिंहs/o श्री चतरसिंह उर्फ अमरसिंह
फोटो: श्री गणपतसिंहs/o श्री चतरसिंह उर्फ अमरसिंह 
01- लालसिंह- गणपतसिंह के पहले पुत्र लालसिंह थे, लालसिंह कलकत्ता चले गए, लालसिंह के चार पुत्र  
                  हुए, जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
         01- किशनसिंह - (निवास उदयपुर (राणाजी) के एक पुत्र हुवा:- 
             01- अजयसिंह
         02- नाहरसिंह-(निवास उदयपुर (राणाजी) के तीन पुत्र हुए:-
                   01- चिमनसिंह
                   02- कारनसिंह
                   03- मनोजसिंह
         03- किशोरसिंह-
         04- गोपालसिंह-
(कुछ समय बाद में लालसिंह के चार पुत्रों में से तीन पुत्र:-किशनसिंह,  नाहरसिंह, किशोरसिंह भी उदयपुर (राणाजी के) में आकर बस गए और लालसिंह के चौथे पुत्र गोपालसिंह कलकत्ता रहने लागे ।)
02- देवीसिंह- गणपतसिंह के दूसरे पुत्र देवीसिंह थे, देवीसिंह के छह पुत्र हुए, जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
         01- राजेन्द्रसिंह- देवीसिंह के प्रथम पुत्र राजेन्द्रसिंह के चार पुत्री और एक पुत्र हुवा:-
                      01- विकाससिंह
                      02- शुशीलाकँवर- शुशीलाकँवर की शादी गांव मालासी,जिला सीकर के बिजेन्दरसिंह शेखावत के साथ हुई।  
                      03- रेखाकँवर- रेखाकँवर की शादी जिला सीकर के  राजेंद्रसिंह के साथ हुई।   
                      04- चंदाकँवर- चंदाकँवरकी शादी जयपुर के भंवरसिंह  राजावत के साथ हुई। 
                      05- आशाकँवर- 
02- रामसिंह - देवीसिंह के दूसरे पुत्र रामसिंह के एक पुत्र हुवा:- 
             01- पंकजसिंह
03- नारायणसिंह - देवीसिंह के तीसरे पुत्र नारायणसिंह के एक पुत्री                और दो पुत्र हुए:-
         01- मनीषसिंह
         02- पीयूषसिंह
         03- निशाकँवर- निशाकँवर की शादी जड़वा(सतनाली, हरियाणा) के संगीतसिंह तंवर के साथ हुई।      
04- लक्ष्मणसिंह- कुछ समय बाद में चतरसिंह उर्फ अमरसिंह के पुत्र गणपतसिंह का पोता लक्ष्मणसिंह यानि देवीसिंह का चौथा पुत्र लक्ष्मणसिंह भी उदयपुर (राणाजी के) में आकर बस गए,  लक्ष्मणसिंह के  दो पुत्र हुए:-
     01- हेमंतसिंह 
     02- नरेंद्रसिंह  
05- कानसिंह - देवीसिंह के पांचवें पुत्र कानसिंह के दो पुत्र हुए:-
     01-कर्णसिंह 
     02- अर्जनसिंह
06- नरपतसिंह- देवीसिंह के छठे पुत्र नरपतसिंह के एक पुत्र हुवा -
     01- प्रशांतसिंह
03- धनसिंह- गणपतसिंह के तीसरे पुत्र धनसिंह थे, धनसिंह उदयपुर (राणाजी के) में आकर बस गए,   
                    धनसिंह के तीन पुत्र हुए, जिनके नाम इसप्रकार हैं -:
         01- छगनसिंह - छगनसिंह के एक पुत्र हुवा भरतसिंह
         02- मंगनसिंह मंगनसिंह के एक पुत्र हुवा हिमांशुसिंह 
         03 सतीशसिंह - सतीशसिंह के दो पुत्र हुए 
            01- प्रियांशुसिंह 
            02- आदित्यसिंह
मेरे द्वारा लिखित मेड़तिया राठौड़ों का इतिहास व इनके बारे में दी गयी जानकारी आपको कैसी लगी ? My mob.no.9901306658 . 
ms .pepsingh @rediffmail.com
अगर आपके पास भी कोई जानकारी हो तो लिख भेजिए आपके सुझाव व स्नेह सहर्ष आमंत्रित है।

[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास 
गाँवपोस्ट - तोगावासतहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थानपिन - 3313
।।इति।।