बनीरोत राठौड़
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खापे - बनीरोत राठौड़
बनीरोत राठौड़ - बाघजी के पुत्र बणीरजी के ग्यारह पुत्र थे ये ग्यारह पुत्र और इनके वंसज बनीरोत राठौड़ की कहलाये हैं। बणीरजी; राव कांधलजी के पोते और राव रिड़मालजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।ठिकाने गांव चाचिवाद, मेलूसर व धान्धू बाघजी के अधिकार में थे। राव बणीरजी, अपने दादाजी राव कांधलजी की मौत के बाद रावतसर के दूसरे रावत बनें, लेकिन उनके चाचा रावत लखदीरसिंह ने उन से रावतसर की गद्दी हड़प ली और राव बणीरजी को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया, बाद में राव बणीरजी ने सम्वत 1500 के आसपास घांघू ठिकाने की स्थापना की।
[रियासत का जो मुख्य राजा राज करता था वो दूसरे किसी को भी चिट्ठी लिखकर गाँव या जमीन का लिखित मेँ पट्टा देता था वो ताजीमी ठाकुर व उसका ठिकाना ताजीम कहलाता था। जिनको मुख्य राजा या राज से चिट्ठी-पट्टे दिये गये वे टिकाई ठाकुरोँ मेँ गिने जाने लगे तथा एक गाँव मेँ जितनी चिट्ठीयाँ-पट्टे दिये गये वे ठाकुर परिवार अपने-अपने गाँव या अपने हिस्से कि जमीन के टीकाई ठाकुर कहलाने लगे और टीकाई के अलावा अन्य जो ठाकुर थे वे छुटभाई कहलाते थे। इस प्रकार रियासत मेँ सरदारों की तीन श्रेणियाँ होती थी।
01 - ताजीमी
02 - टीकाई चिट्ठीदार
03 - छुटभाई
उपरोक्त तीनोँ मिलकर एक रियासत कहलाती थी।
काँधल जी के बङे लङके बाघसिंह जी अपने पिता का बैर लेते हुये मारे गये थे। बाघसिंह जी के बङे लङके बणीरजी की बाल अवस्था होने के कारण काँधल जी कि पाग और "रावताई" की पदवी दोनों राजसिँह को मिली थी। कुल चार मुख्य ठिकानों मेँ से राव काँधल जी के वंश मेँ रावतसर के रावतोत, चुरू के बणीरोत, भादरा के साँईदासोत तीन ठिकाने कायम हुये। रावतसर के रावत तो राज्य के "सरायत" सरदारों मेँ थे मगर काँधलोँ के ठिकानों कि गणना तो बीकानेर राज्य के प्रमुख ठिकानों मेँ रही है। काँधलोँ के पट्टोँ के गाँवो कि स्थिति व संख्या मेँ बहुत उतार चढाव हुवा क्योकि 1657 ई. से 1668 ई. के बीच बिकोँ के पट्टोँ मेँ 5 प्रतिशत कि बढोतरी हो गयी थी। चूरू को चुहरू नाम के कालेर जाट ने बसाया था। जिस स्थान पर ये आकर बसे वह आज भी कालेरा बास के नाम से जाना जाता है। मालदेव जी के चुरू आने से पहले चुरू नाम गाँव बास कालेरा था। जो कस्वाँ जाटोँ के अधिन था। महाराजा जैतसिँह जी के रजवाङे से संवत 1596 मेँ मालदेव जी ने अपने अधिन कर चुरू नाम दिया। राव काँधल जी का पूत्र बाघसिंह हुवा तब तक सात ठिकाने थे व बणीर जी तक सात हि ठिकाने रहे। बणीर जी के वंशज बणीरोत कहलाये व मालदेव जी ने हि चुरू ठिकाना बाँधा जो ताजीम इनायत हुयी यानी मुख्य ठिकाना चुरू बना व ईन सभी चुरू के भाईयोँ के 39 रेख तथा 32 गाँव थे । चुरू ताजीम मेँ कुल 84 गाँव थे जो चुरू कि चौरासी बाजते थे (बोल चाल कि भाषा मेँ चुरू की चौरासी या चौरासी आळी रेख से सम्बोधन करते थे ठिकाणो चुरू पट्टा 84 गाँव कि चाकरी असवार रेख 84) ]
पीढ़ी 01 - बाघजी -राव कांधलजी के पुत्र बाघजी के तीन पुत्र थे -:
01 – बणीरजी - बाघजी के पुत्र बणीरजी को ठिकाना गांव चाचिवाद मिला था। बणीरजी के वंशज बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं।
02 - नारायणदासजी - बाघजी के पुत्र नारायणदासजी को ठिकानागांव धमोरा व ओटू [हरियाणा में] मिला था।
03 - रायमलजी - बाघजी के पुत्र रायमलजी को ठिकाना गांव उडमाना (रोहतक) मिला था।
पीढ़ी 02 - बणीरजी - जब राव कांधल जी छत्तरियांवाली में काम आये, अपने पिता की मौत का बैर लेते हुए बाघ जी थोड़े ही महीने बाद झांसल के युद्ध में काम आये । बणीर जी छोटे थे और अकेले भी, उन्होंने पहले मेलूसर पर अपना कब्ज़ा किया और वहां तालाब भी बनवाया। फिर उन्होंने अपना ठिकाना घांघू में बाँधा। उनके बाद बणीरोतों के तीन बड़े ठिकाने कायम हुए –1.चुरू -मालदेवजी, 2.घांघू - अचलदासजी,3.घंटेल - महेशदासजी चुरू के ठाकुर कुशलसिंह के वक्त से चुरू का प्रभाव ज़्यादा हुआ और बाकी बणीरोत ठिकाने उनके नीचे आगए। बाद में चुरू और भादरा के साथ घांघू भी खालसा हो गया। बीकानेर और अंग्रेजी सेना का एक तरफ से आक्रमण और शेखावतों का दूसरी तरफ से आक्रमण बणीरोतों के लिए बहुत भारी पड़ गया। खालसा के बाद ठिकाना सिर्फ तीन गाँव का रह गया [लाखाउ पहले ही अलग हो गया था)। खालसा के बाद बणीरोतों के [57 गाँवों] के पट्टे यह थे -:
01 - कुचेरा [चुरु वाला]
02 - घांघू [3 गाँव]
03 - देपालसर [8 गाँव]
04 - झरिया [8गाँव]
05 - सात्यूं [8 गाँव]
06 - लोहसना [7 गाँव]
07 - अन्य [23 गाँव]
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खापे - बनीरोत राठौड़
बनीरोत राठौड़ - बाघजी के पुत्र बणीरजी के ग्यारह पुत्र थे ये ग्यारह पुत्र और इनके वंसज बनीरोत राठौड़ की कहलाये हैं। बणीरजी; राव कांधलजी के पोते और राव रिड़मालजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।ठिकाने गांव चाचिवाद, मेलूसर व धान्धू बाघजी के अधिकार में थे। राव बणीरजी, अपने दादाजी राव कांधलजी की मौत के बाद रावतसर के दूसरे रावत बनें, लेकिन उनके चाचा रावत लखदीरसिंह ने उन से रावतसर की गद्दी हड़प ली और राव बणीरजी को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया, बाद में राव बणीरजी ने सम्वत 1500 के आसपास घांघू ठिकाने की स्थापना की।
[रियासत का जो मुख्य राजा राज करता था वो दूसरे किसी को भी चिट्ठी लिखकर गाँव या जमीन का लिखित मेँ पट्टा देता था वो ताजीमी ठाकुर व उसका ठिकाना ताजीम कहलाता था। जिनको मुख्य राजा या राज से चिट्ठी-पट्टे दिये गये वे टिकाई ठाकुरोँ मेँ गिने जाने लगे तथा एक गाँव मेँ जितनी चिट्ठीयाँ-पट्टे दिये गये वे ठाकुर परिवार अपने-अपने गाँव या अपने हिस्से कि जमीन के टीकाई ठाकुर कहलाने लगे और टीकाई के अलावा अन्य जो ठाकुर थे वे छुटभाई कहलाते थे। इस प्रकार रियासत मेँ सरदारों की तीन श्रेणियाँ होती थी।
01 - ताजीमी
02 - टीकाई चिट्ठीदार
03 - छुटभाई
उपरोक्त तीनोँ मिलकर एक रियासत कहलाती थी।
काँधल जी के बङे लङके बाघसिंह जी अपने पिता का बैर लेते हुये मारे गये थे। बाघसिंह जी के बङे लङके बणीरजी की बाल अवस्था होने के कारण काँधल जी कि पाग और "रावताई" की पदवी दोनों राजसिँह को मिली थी। कुल चार मुख्य ठिकानों मेँ से राव काँधल जी के वंश मेँ रावतसर के रावतोत, चुरू के बणीरोत, भादरा के साँईदासोत तीन ठिकाने कायम हुये। रावतसर के रावत तो राज्य के "सरायत" सरदारों मेँ थे मगर काँधलोँ के ठिकानों कि गणना तो बीकानेर राज्य के प्रमुख ठिकानों मेँ रही है। काँधलोँ के पट्टोँ के गाँवो कि स्थिति व संख्या मेँ बहुत उतार चढाव हुवा क्योकि 1657 ई. से 1668 ई. के बीच बिकोँ के पट्टोँ मेँ 5 प्रतिशत कि बढोतरी हो गयी थी। चूरू को चुहरू नाम के कालेर जाट ने बसाया था। जिस स्थान पर ये आकर बसे वह आज भी कालेरा बास के नाम से जाना जाता है। मालदेव जी के चुरू आने से पहले चुरू नाम गाँव बास कालेरा था। जो कस्वाँ जाटोँ के अधिन था। महाराजा जैतसिँह जी के रजवाङे से संवत 1596 मेँ मालदेव जी ने अपने अधिन कर चुरू नाम दिया। राव काँधल जी का पूत्र बाघसिंह हुवा तब तक सात ठिकाने थे व बणीर जी तक सात हि ठिकाने रहे। बणीर जी के वंशज बणीरोत कहलाये व मालदेव जी ने हि चुरू ठिकाना बाँधा जो ताजीम इनायत हुयी यानी मुख्य ठिकाना चुरू बना व ईन सभी चुरू के भाईयोँ के 39 रेख तथा 32 गाँव थे । चुरू ताजीम मेँ कुल 84 गाँव थे जो चुरू कि चौरासी बाजते थे (बोल चाल कि भाषा मेँ चुरू की चौरासी या चौरासी आळी रेख से सम्बोधन करते थे ठिकाणो चुरू पट्टा 84 गाँव कि चाकरी असवार रेख 84) ]
पीढ़ी 01 - बाघजी -राव कांधलजी के पुत्र बाघजी के तीन पुत्र थे -:
01 – बणीरजी - बाघजी के पुत्र बणीरजी को ठिकाना गांव चाचिवाद मिला था। बणीरजी के वंशज बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं।
02 - नारायणदासजी - बाघजी के पुत्र नारायणदासजी को ठिकानागांव धमोरा व ओटू [हरियाणा में] मिला था।
03 - रायमलजी - बाघजी के पुत्र रायमलजी को ठिकाना गांव उडमाना (रोहतक) मिला था।
पीढ़ी 02 - बणीरजी - जब राव कांधल जी छत्तरियांवाली में काम आये, अपने पिता की मौत का बैर लेते हुए बाघ जी थोड़े ही महीने बाद झांसल के युद्ध में काम आये । बणीर जी छोटे थे और अकेले भी, उन्होंने पहले मेलूसर पर अपना कब्ज़ा किया और वहां तालाब भी बनवाया। फिर उन्होंने अपना ठिकाना घांघू में बाँधा। उनके बाद बणीरोतों के तीन बड़े ठिकाने कायम हुए –1.चुरू -मालदेवजी, 2.घांघू - अचलदासजी,3.घंटेल - महेशदासजी चुरू के ठाकुर कुशलसिंह के वक्त से चुरू का प्रभाव ज़्यादा हुआ और बाकी बणीरोत ठिकाने उनके नीचे आगए। बाद में चुरू और भादरा के साथ घांघू भी खालसा हो गया। बीकानेर और अंग्रेजी सेना का एक तरफ से आक्रमण और शेखावतों का दूसरी तरफ से आक्रमण बणीरोतों के लिए बहुत भारी पड़ गया। खालसा के बाद ठिकाना सिर्फ तीन गाँव का रह गया [लाखाउ पहले ही अलग हो गया था)। खालसा के बाद बणीरोतों के [57 गाँवों] के पट्टे यह थे -:
01 - कुचेरा [चुरु वाला]
02 - घांघू [3 गाँव]
03 - देपालसर [8 गाँव]
04 - झरिया [8गाँव]
05 - सात्यूं [8 गाँव]
06 - लोहसना [7 गाँव]
07 - अन्य [23 गाँव]
लूणकरणजी द्वारा ददरेवा पर अधिकार के समय बणीरजी लूणकरणजी की सेना में शामिल थे। जैसलमेर पर जब लूणकरणजी ने चढ़ाई की तब भी बणीरजी लूणकरणजी के साथ में थे। बीकानेर के महाराजा जैतसिंह जी के समय वि.सं.1791 में कामरान ने जब बीकानेर पर चढ़ाई की तब उसे हटाने में बणीरजी का पूरा सहयोग था। जयमल मेड़तिया की राव कल्याणमल ने मालदेव के विरुद्ध सहायता की तब भी बणीर जी बीकानेर की सेना के साथ थे।
बाघजी के पुत्र बणीरजी के ग्यारह पुत्र थे :-
01 - मेघराजजी - बणीरजी के पुत्र मेघराजजी को ठिकाना गांव ऊंटवालिया मिला था।
02 - मेकर्णजी - बणीरजी के पुत्र मेकर्णजी को ठिकाना गांव कानसर मिला था।
03 - मेदजी - बणीरजी के पुत्र मेदजी को ठिकाना गांव सिरियासर मिला था।
04 - कल्लाजी - ठिकाना गांव सिरियासर
05 - रूपजी - चूरू पर ही रहे।
06 - हरदासजी -
07 - हमीरजी - चूरू पर ही रहे।
08 - मालदेवजी - बणीरजी के पुत्र मालदेवजी को ठिकाना गांव चुरू मिला था।
09 - अचलदासजी - बणीरजी के पुत्र अचलदासजी को ठिकाना गांव घांघूव लाखाऊ मिला था।
10 - महेशदासजी - बणीरजी के पुत्र महेशदासजी को ठिकाना गांव घन्टेल व कडवासर मिला था।
11 - जेतसी - बणीरजी के पुत्र जेतसी को ठिकाना गांव घंटेल [तहसील व जिला चूरू,राजस्थान {भारत}] मिला था।
पीढ़ी 03 - मालदेवजी - बणीरजी के पुत्र मालदेवजी को ठिकाना गांव चुरू मिला था। इनके पांच पुत्र थे -:
01 - रामचन्द्रजी - मालदेवजी के पुत्र रामचन्द्रजी को ठिकाना गांव बीनासर मिला था।
02 - सांवल दासजी - मालदेवजी के पुत्र सांवल दासजी को ठिकाना गांव चूरू मिला था।
03 - नरहरिदासजी[नर्सिदास] - ठिकाना चुरू, मालदेवजी के पुत्र ।
04 - दूदाजी - ठिकाना चुरू, मालदेवजी के पुत्र।
05 - महताबजी
मालदेवजी के तीन पुत्र नरहरिदासजी[नर्सिदास] ,दूदाजी, महताबजी ये बीकानेर के राजा रामसिंह द्वारा मारे गए।
पीढ़ी 04 - सांवल दासजी - मालदेवजी के पुत्र सांवल दासजी 6 पुत्र थे :-
01 - बलभद्रजी - सांवल दासजी के पुत्र बलभद्रजी को ठिकाना गांव चूरू मिला था। बलभद्रजी के एक हुवा भीमसिह ।
02 - चतुर्भुजजी - सांवल दासजी के पुत्र चतुर्भुजजी चूरू पर ही रहे।
03 - सूरसिंह - सांवल दासजी के पुत्र सूरसिंह को ठिकाना गांव चलकोई मिला था।
04 - माधोसिंह - सांवल दासजी के पुत्र माधोसिंह पंजाब में चले गए थे सो इनके वंसज पंजाब पंजाब में हैं।
05 - जयमलजी - सांवल दासजी के पुत्र जयमलजी को ठिकाना गांव इन्द्रपुरा मिला था।
06 - कुम्कर्ण - सांवल दासजी के पुत्र ,कुम्कर्णजी के पुत्र किसनसिंह हुए।
पीढ़ी 05 - बलभद्रजी - सांवल दासजी के पुत्र बलभद्रजी को ठिकाना गांव चूरू मिला था। बलभद्रजी के एक हुवा भीमसिह ।
पीढ़ी 06 - भीमसिह - भीमसिह अपने पिता बलभद्रजी की गद्दी चूरू पर ही रहे [बलभद्रजी के पैट बैठे भीमसिंह]। भीमसिह के पांच पुत्र हुए -:
01 - तेजसिँह - ठिकाना गांव लोसना [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान]।
02 - प्रतापसिँह - भीमसिह के पुत्र प्रतापसिँह को ठिकाना गांव लोहसना बड़ा और लोहसना छोटा [दोनों ही गांव तहसील व जिला चूरू, राजस्थान में] मिला था।
03 - कुशलसिंह - कुशलसिंह अपने पिता की गद्दी चूरू पर ही रहे। कुशलसिंह के एक पुत्र हुवा इन्द्रसिंह, अपने पिता की गद्दी चूरू पर ही रहे।
04 - भोजराजजी - भीमसिह के पुत्र भोजराजजी को ठिकाना गांव दुधवा खरा और दुधवा मीठा दोनों गांव के अलावा देपालसर,और मेघसर [सभी गांव राजस्थान के जिले चूरु में] मिले थे।
05 - सांवतसिह - भीमसिह चूरू के पुत्र।
पीढ़ी 07 - कुशलसिंह - कुशलसिंह ने बीकानेर के राजा करणसिंह व अनूपसिंह के साथ दक्षिण में रहकर कई युद्धों में भाग लिया था। जब ओरंगाबाद में करणसिंह की म्रत्यु हुयी, तब बीकानेर के सारे सरदार उन्हें छोड़कर बीकानेर चले आये थे मगर पर कुशलसिंह ने अपना कर्तव्य निभाया और करणसिंह के सारे मरत करम करवाए। कुशलसिंहजी ने ही चूरू शहर की सुरक्षा के लिए चुरू में किला बनवाया । सुरक्षा के कारण फतहपुर में बहुत से महाजन लोग यहाँ आकर बस गए । कुशलसिंह अपने पिता भीमसिह की गद्दी चूरू पर ही रहे।कुशलसिंहजी चूरू के दो पुत्र थे-:
01 - चत्रसालजी - चत्रसालजी को ठिकाना गांव देपालसर मिला था।
02 - इन्द्रसिंह - इन्द्रसिंह अपने पिता की गद्दी चूरू पर ही रहे।
पीढ़ी 08 - इन्द्रसिंह - इन्द्रसिंह अपने पिता कुशलसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। शेखावतों द्वारा फतेहपुर की विजय के समय इन्द्रसिंह सेना सहित नवाब की सहायता को गए थे। इन्द्रसिंह के 6 पुत्र हुए-:
01 - जुझारसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र जुझारसिह को ठिकाना गांव सिरसला [जिला चूरू] मिला था। बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह ने इन्द्रसिंह से रुष्ट होकर चुरू का पट्टा जुझारसिंह के नाम कर दिया था। तब इन्द्रसिंह बीकानेर राज्य से विद्रोह हो गए। इन्द्रसिंह ने बीकानेर पर जोधपुर आक्रमण होने के समय जोधपुर का साथ दिया था।
02 - संग्राम सिह - [कुशलसिंह के पाट बैठे संग्रामसिंह] संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे।संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था। बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह ने संग्रामसिंह की वि.सं.1798 में छल से गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] में हत्या करवा दी थी।
03 - भोपसिह -
04 - हनुमंतसिंह -
05 - जालम सिह -
06 - नत्थुसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था।
पीढ़ी 09 - संग्राम सिह - संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिह के तीन पुत्र हुए-:
01 - चेनसिह - चेनसिह अपने पिता संग्रामसिह की गद्दी चूरू पर ही रहे।
02 - धीरसिंह - संग्रामसिंह के पाट बैठे धीरसिंह, धीरसिंह की मर्त्यु के बाद उनके भाई हरिसिंह चूरू की गद्दी पर बैठे।
03 - हरिसिह - संग्रामसिह के पुत्र हरिसिह को चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास और खंडवा मिले थे।
पीढ़ी 10 - धीरसिंह - धीरसिंह की मर्त्यु के बाद उनके भाई हरिसिंह चूरू की गद्दी पर बैठे। धीरसिंह अपने पिता संग्रामसिह के पास चूरू पर ही रहे। धीरसिंह के दो पुत्र थे -:
01 - विजयसिह - धीरतसिह के पुत्र विजयसिह को ठिकाना गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
02 - सूरजमलजी - धीरतसिह के पुत्र सूरजमलजी को ठिकाना गांव झारिया [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
पीढ़ी 10 - हरिसिह - संग्रामसिह के पुत्र हरिसिह को चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास और खंडवा मिले थे। हरिसिह के चार पुत्र थे -:
01 - शिव सिह - हरिसिह के पुत्र शिवसिह चूरू पर ही रहे। [हरिसिंह चूरू के पाट बैठे शिवसिंह [शिवसिंह को श्योजीसिंह व शिवजीसिंह के नाम से भी पुकारा जाता था।
02 - मानसिह - हरिसिंह के पुत्र मानसिह को ठिकाना गांव भैरूंसर [तहसील व जिला चूरू में] मिला था।
03 - सालमसिह - हरिसिंह के पुत्र सालमसिह को ठिकाना गांव रामसरा [तहसील व जिला चूरू में] मिला था।
04 - नाहरसिंह - हरिसिंह के पुत्र।
पीढ़ी 11 - शिवसिह - हरिसिंह चूरू के पाट बैठे शिवसिंह [शिवसिंह को श्योजीसिंह व शिवजीसिंह के नाम से भी पुकारा जाता था।चुरू के शिवसिहजी ने बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह की अधीनता स्वीकार नहीं की । अतः महाराजा सूरतसिंह ने अपनी सेना सहीत चुरू पर आक्रमण कर दिया लेकिन विफल होना पड़ा । जब जोधपुर द्वारा बीकानेर पर आक्रमण किया गया तब बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह ने शिवसिंह को अपनी सहतायार्थ बुलाया मगर शिवसिंहजी सहायता की बजाय बीकानेर क्षेत्र को लुटने लगे। सूरतसिंह ने अंत में 1870 वि.में चुरू पर आक्रमण कर दिया । महाराजा को सफलता न मिली और वहां से रिणी [वर्तमान तारानगर]चले गए। कुछ समय बाद सूरतसिंह ने फिर चुरू पर आक्रमण किया। शिवसिंहजी ने कड़ा मुकाबला किया। किले में जब गोला बारूद खत्म हो गया तो शिवसिंहजी ने चांदी के गोले ढलवाये और युद्ध जारी रखा । समय 1871 वि.कार्तिक सुदी में शिवसिंहजी का किले में देहांत हो गया तब कहीं बीकानेर का चुरू पर अधिकार हुआ। इनके बाद शिवसिंहजी के पुत्र प्रथ्वीसिंह ने चुरू को वापिस लेने के लिए बहुत कोशिस की और अंत में बहुत से लोगों की मदद से चुरू पर वापिस अधिकार कर लिया । बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह को बहुत चिंता हुयी और जब कोई उपाय न रहा तब अंग्रेजों से संधि कर ली और अंग्रेज सेनाधिकारी बिर्गेडियर अर्नाल्ड ने सूरतसिंह के सहयोग से चुरू पर अधिकार कर लिया। सूरतसिंह के मरने के बाद फिर बीकानेर के महाराजा रतनसिंह ने प्रथ्वीसिंह से मेल-मिलाप कर लिया और कुचेरा की जागीरी प्रथ्वीसिंह को दे दी। कुचोरा की गद्धी पर प्रथ्वीसिंह के बाद भैरूसिंह, बालसिंह ,प्रतापसिंह व कानसिंह रहे।
शिवसिह के 6 पुत्र थे-:
01 - पृथ्वीसिंह - शिवसिह के पुत्र पृथ्वीसिंह चूरू पर ही रहे।
02 - भीमसिंह [भोपसिह] - शिवसिह के पुत्र भीमसिंह [भोपसिह] को ठिकाना गांव हर्सोलावा[जोधपुर] मिला था।
03 - सगतसिह - शिवसिह के पुत्र सगतसिह को ठिकाना गांव हरपालसर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। सगतसिह के दो पुत्र हुए -:
01 - रावतसिंह - रावतसिंह को ठिकाना गांव दांदू [जिला चूरू, राजस्थान]
मिला था।
02 - आईदानसिंह -आईदानसिंह को ठिकाना गांव पुनुसार [तहसील
सरदारशहर,जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
04 - चांदसिंह
05 - पदमसिह – शिवसिह के पुत्र पदमसिह को ठिकाना गांव खंडवा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] और ठिकाना गांव हिगोनिय [हिंगुणिया,जयपुर के पास] मिला था।
06 - सोभागजी
पीढ़ी 12 - पृथ्वीसिंह - शिवसिह के पुत्र पृथ्वीसिंह चूरू पर ही रहे। पृथ्वीसिंह के 6 पुत्र थे -:
01 - भैरूंसिंह - पृथ्वीसिंह चूरू के पाट बैठे भैरुँसिंह। भैरुँसिंह के अधिकार में चूरू के अलावा कुचेरा [कुचेरा पट्टा चूरू, जिला नागौर,राजस्थान] भी था।
02 - भवानीसिह
03 - इसरीसिंह [ ईश्वरसिह] - इसरीसिंह को ठिकाना गांव बुचावास [तहसील तारानगर, जिला चूरू,राजस्थान] मिला था।
04 - महेसदासजी - चूरू
05 - गोपालजी - गोपालजी को ठिकाना गांव धोधलिया व थिरियासर [दोनों ही गांव तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान] मिला था।
06 - कुशलसिह - इसरीसिंह के कोई संतान नहीं थी इसलिए कुशलसिह अपने भाई इसरीसिंह के गोद गए।
पीढ़ी 13 - भैरूंसिंह - भैरूंसिंह के पुत्र हुए लालसिंह। भैरूंसिंह चूरू के पाट बैठे लालसिंह।
02 - संग्राम सिह - [कुशलसिंह के पाट बैठे संग्रामसिंह] संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे।संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था। बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह ने संग्रामसिंह की वि.सं.1798 में छल से गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] में हत्या करवा दी थी।
03 - भोपसिह -
04 - हनुमंतसिंह -
05 - जालम सिह -
06 - नत्थुसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था।
पीढ़ी 09 - संग्राम सिह - संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिह के तीन पुत्र हुए-:
01 - चेनसिह - चेनसिह अपने पिता संग्रामसिह की गद्दी चूरू पर ही रहे।
02 - धीरसिंह - संग्रामसिंह के पाट बैठे धीरसिंह, धीरसिंह की मर्त्यु के बाद उनके भाई हरिसिंह चूरू की गद्दी पर बैठे।
03 - हरिसिह - संग्रामसिह के पुत्र हरिसिह को चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास और खंडवा मिले थे।
पीढ़ी 10 - धीरसिंह - धीरसिंह की मर्त्यु के बाद उनके भाई हरिसिंह चूरू की गद्दी पर बैठे। धीरसिंह अपने पिता संग्रामसिह के पास चूरू पर ही रहे। धीरसिंह के दो पुत्र थे -:
01 - विजयसिह - धीरतसिह के पुत्र विजयसिह को ठिकाना गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
02 - सूरजमलजी - धीरतसिह के पुत्र सूरजमलजी को ठिकाना गांव झारिया [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
पीढ़ी 10 - हरिसिह - संग्रामसिह के पुत्र हरिसिह को चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास और खंडवा मिले थे। हरिसिह के चार पुत्र थे -:
01 - शिव सिह - हरिसिह के पुत्र शिवसिह चूरू पर ही रहे। [हरिसिंह चूरू के पाट बैठे शिवसिंह [शिवसिंह को श्योजीसिंह व शिवजीसिंह के नाम से भी पुकारा जाता था।
02 - मानसिह - हरिसिंह के पुत्र मानसिह को ठिकाना गांव भैरूंसर [तहसील व जिला चूरू में] मिला था।
03 - सालमसिह - हरिसिंह के पुत्र सालमसिह को ठिकाना गांव रामसरा [तहसील व जिला चूरू में] मिला था।
04 - नाहरसिंह - हरिसिंह के पुत्र।
पीढ़ी 11 - शिवसिह - हरिसिंह चूरू के पाट बैठे शिवसिंह [शिवसिंह को श्योजीसिंह व शिवजीसिंह के नाम से भी पुकारा जाता था।चुरू के शिवसिहजी ने बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह की अधीनता स्वीकार नहीं की । अतः महाराजा सूरतसिंह ने अपनी सेना सहीत चुरू पर आक्रमण कर दिया लेकिन विफल होना पड़ा । जब जोधपुर द्वारा बीकानेर पर आक्रमण किया गया तब बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह ने शिवसिंह को अपनी सहतायार्थ बुलाया मगर शिवसिंहजी सहायता की बजाय बीकानेर क्षेत्र को लुटने लगे। सूरतसिंह ने अंत में 1870 वि.में चुरू पर आक्रमण कर दिया । महाराजा को सफलता न मिली और वहां से रिणी [वर्तमान तारानगर]चले गए। कुछ समय बाद सूरतसिंह ने फिर चुरू पर आक्रमण किया। शिवसिंहजी ने कड़ा मुकाबला किया। किले में जब गोला बारूद खत्म हो गया तो शिवसिंहजी ने चांदी के गोले ढलवाये और युद्ध जारी रखा । समय 1871 वि.कार्तिक सुदी में शिवसिंहजी का किले में देहांत हो गया तब कहीं बीकानेर का चुरू पर अधिकार हुआ। इनके बाद शिवसिंहजी के पुत्र प्रथ्वीसिंह ने चुरू को वापिस लेने के लिए बहुत कोशिस की और अंत में बहुत से लोगों की मदद से चुरू पर वापिस अधिकार कर लिया । बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह को बहुत चिंता हुयी और जब कोई उपाय न रहा तब अंग्रेजों से संधि कर ली और अंग्रेज सेनाधिकारी बिर्गेडियर अर्नाल्ड ने सूरतसिंह के सहयोग से चुरू पर अधिकार कर लिया। सूरतसिंह के मरने के बाद फिर बीकानेर के महाराजा रतनसिंह ने प्रथ्वीसिंह से मेल-मिलाप कर लिया और कुचेरा की जागीरी प्रथ्वीसिंह को दे दी। कुचोरा की गद्धी पर प्रथ्वीसिंह के बाद भैरूसिंह, बालसिंह ,प्रतापसिंह व कानसिंह रहे।
शिवसिह के 6 पुत्र थे-:
01 - पृथ्वीसिंह - शिवसिह के पुत्र पृथ्वीसिंह चूरू पर ही रहे।
02 - भीमसिंह [भोपसिह] - शिवसिह के पुत्र भीमसिंह [भोपसिह] को ठिकाना गांव हर्सोलावा[जोधपुर] मिला था।
03 - सगतसिह - शिवसिह के पुत्र सगतसिह को ठिकाना गांव हरपालसर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। सगतसिह के दो पुत्र हुए -:
01 - रावतसिंह - रावतसिंह को ठिकाना गांव दांदू [जिला चूरू, राजस्थान]
मिला था।
02 - आईदानसिंह -आईदानसिंह को ठिकाना गांव पुनुसार [तहसील
सरदारशहर,जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
04 - चांदसिंह
05 - पदमसिह – शिवसिह के पुत्र पदमसिह को ठिकाना गांव खंडवा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] और ठिकाना गांव हिगोनिय [हिंगुणिया,जयपुर के पास] मिला था।
06 - सोभागजी
पीढ़ी 12 - पृथ्वीसिंह - शिवसिह के पुत्र पृथ्वीसिंह चूरू पर ही रहे। पृथ्वीसिंह के 6 पुत्र थे -:
01 - भैरूंसिंह - पृथ्वीसिंह चूरू के पाट बैठे भैरुँसिंह। भैरुँसिंह के अधिकार में चूरू के अलावा कुचेरा [कुचेरा पट्टा चूरू, जिला नागौर,राजस्थान] भी था।
02 - भवानीसिह
03 - इसरीसिंह [ ईश्वरसिह] - इसरीसिंह को ठिकाना गांव बुचावास [तहसील तारानगर, जिला चूरू,राजस्थान] मिला था।
04 - महेसदासजी - चूरू
05 - गोपालजी - गोपालजी को ठिकाना गांव धोधलिया व थिरियासर [दोनों ही गांव तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान] मिला था।
06 - कुशलसिह - इसरीसिंह के कोई संतान नहीं थी इसलिए कुशलसिह अपने भाई इसरीसिंह के गोद गए।
पीढ़ी 13 - भैरूंसिंह - भैरूंसिंह के पुत्र हुए लालसिंह। भैरूंसिंह चूरू के पाट बैठे लालसिंह।
पीढ़ी 14 - लालसिंह - भैरूंसिंह के पुत्र हुए लालसिंह। भैरूंसिंह चूरू के पाट बैठे लालसिंह। लालसिंह के तीन पुत्र थे-:
01 - प्रतापसिंह - लालसिंह चूरू के पाट बैठे प्रतापसिंह।
02 - दीपसिंह
03 - जसवंतसिंह - प्रतापसिंह के कोई संतान नहीं थी इसलिए, प्रतापसिंह के पाट बैठे उनके भाई जसवंतसिंह। जसवंतसिंह के भी कोई संतान नहीं थी इसलिए कानसिंह जसवंतसिंह के गोद गए। जसवंतसिंह के भी कोई संतान नहीं थी इसलिए कानसिंह जसवंतसिंह के गोद गए।
बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
01 - प्रतापसिंह - लालसिंह चूरू के पाट बैठे प्रतापसिंह।
02 - दीपसिंह
03 - जसवंतसिंह - प्रतापसिंह के कोई संतान नहीं थी इसलिए, प्रतापसिंह के पाट बैठे उनके भाई जसवंतसिंह। जसवंतसिंह के भी कोई संतान नहीं थी इसलिए कानसिंह जसवंतसिंह के गोद गए। जसवंतसिंह के भी कोई संतान नहीं थी इसलिए कानसिंह जसवंतसिंह के गोद गए।
बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
बनीरोत राठोड़ों की पन्द्रह शाखाएँ हैं -:
01 - मेघराजोत बनिरोत राठौड़ -:
बनीरोत राठोड़ों की पन्द्रह शाखाएँ हैं -:
01 - मेघराजोत बनिरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र मेघराजजी के वंसज मेघराजोत बनिरोत राठौड़ कहलाते हैं। मेघराजजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे।मेघराजजी को ठिकाना गांव ऊंटवालिया [तहसील व जिला चूरू,राजस्थान{भारत}]मिला था। ऊंटवालिया के आलावा मेघराजोत बनिरोत राठौड़ लोसणा,पनियाली,राणासर,इंद्रपुरा आदि गावों में भी बसते हैं।
मेघराजोत बनिरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मेघराजजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - मैकरनोत [मोहकरणोत] बनिरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र मेकर्णजी के वंसज मैकरनोत [मोहकरणोत] बनिरोत राठौड़ कहलाते हैं। मेकर्णजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। मेकर्णजीको ठिकाना गांव कानसर [जिला चूरू,राजस्थान{भारत}] मिला था।
मैकरनोत [मोहकरणोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मेकर्णजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
03 - मेदसिंघोत बनिरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र मेदजी के वंसज मेदसिंघोत बनिरोत राठौड़ कहलाते हैं। मेदजी को ठिकाना गांव सिरियासर मिला था। मेदजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे।
मेदसिंघोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मेदजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
04 - अचलदासोत बनीरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र अचलदासजी के वंशज अचल्दासोत बनिरोत राठौड़ कहलाये हैं। अचलदासजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। ठिकाना गांव घांघू इनकी जागीरी में था। घांघू के अलावा श्योदानपुर,लखाऊ,सोमासी,कोटवाद ताल, लादड़िया अदि गावों में भी अचलदासोत बनीरोत राठौड़ रहते हैं।
अचल्दासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
अचलदासजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
05- महेशदासोत बनीरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र महेशदासजी के वंसज महेशदासोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। महेशदासजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। महेशदासजी को ठिकाना गांव घन्टेल व कडवासर मिला था। महेशदासोत बनीरोत राठौड़ गांव घन्टेल, कडवासर व बिकसी आदि गावों में रहतें है।
महेशदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
महेशदासजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
06- रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] बनीरोत राठौड़ -:
मालदेवजी के पुत्र रामचन्द्रजी के वंसज रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। रामचन्द्रजी को ठिकाना गांव बीनासर [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। रामचन्द्रजी;बणीरजी के पोते और बाघजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव बीनासर के अलावा देराजसर, मेहरासर, खरियो, खींवणसर, दानुसर आदि थे।
रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
रामचन्द्रजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
07- सूरसीहोत [सुरसिगोत] बनीरोत राठौड़ -:
मालदेवजी के पुत्र सूरसिंह के वंसज सूरसीहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। सूरसिंह को ठिकाना गांव चलकोई [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। सूरसिंह;बणीरजी के पोते और बाघजी के पड़ पोते थे।
सूरसीहोत [सुरसिगोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सूरसिंह - मालदेवजी - - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी -- रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
08 - जयमलोत बनीरोत राठौड़ -:
सांवलदासजी चुरू के पुत्र जयमलजी के वंशज जयमलोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। जयमलजी को ठिकाना गांव इन्द्रपुरा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
जयमलजी;मालदेवजी के पोते और बणीरजी के पड़ पोते थे।
सूरसीहोत [सुरसिगोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
जयमलजी - सांवलदासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
09- प्रतापसिगोत बनीरोत राठौड़ -:
भीमसिह के पुत्र प्रतापसिंह के वंसज प्रतापसिगोत बनीरोत राठौड़ राठौड़ कहलाये हैं। प्रतापसिंह; बलभद्रजी के पोते और सांवल दासजी के पड़ पोते थे। प्रतापसिंह को ठिकाना गांव लोसणा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] और तोगावास [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
लोसणा के अलावा इनके ठिकाना गांव तोगावास, खींवसर, कर्णपुरा,कोटवाद टीबा, एक बस गांव जोड़ी [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] का आदि थे।
प्रतापसिगोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
प्रतापसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
10 - भोजराजोत बनीरोत राठौड़ :-
भीमसिंह जी के पुत्र भोजराजजी के वंशज भोजराजोत बनीरोत कहलाते है। भोजराजजी; बलभद्रजी के पोते और सांवल दासजी के पड़ पोते थे। भोजराजजी को ठिकाना गांव दुधवा खरा और दुधवा मीठा दोनों गांव के अलावा देपालसर,और मेघसर [सभी गांव राजस्थान के जिले चूरु में] मिले थे। इन के अलावा थेलासर, जसरासर, रामपुरा, लालासर, ढाढरियो, कुणसीसर, आसुसर, हणवतपुरा
आदि थे।
भोजराजोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
भोजराजजी - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
11- चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ :-
कुशलसिंहजी चुरू के पुत्र चत्रसालजी के वंशज चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। चत्रसालजी को ठिकाना गांव देपालसर [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ों का देपालसर के अलावा मेघसर, श्यामपुरा, बिनासर, ढाढर, माथौड़ी, बरड़ादास, भामासी आदि थे। चत्रसालजी ; भीमसिह के पोते और बलभद्रजी के पड़ पोते थे।
चत्रसालजी
चत्रसालोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
चत्रसालजी - कुशलसिंहजी - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी -
12- इन्द्रसिंगोत बनीरोत राठौड़ :-
कुशलसिंह चूरू के पुत्र इन्द्रसिंह के वंसज इन्द्रसिंगोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। इन्द्रसिंह;भीमसिह के पोते और बलभद्रजी के पड़ पोते थे।
इन्द्रसिंह के 6 पुत्र हुए-:
01 - जुझारसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र जुझारसिह को ठिकाना गांव सिरसला [जिला चूरू] मिला था।
02 - संग्राम सिह - संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था।
03 - भोपसिह -
04 - हनुमंतसिंह -
05 - जालम सिह -
06 - नत्थुसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था।
इन्द्रसिंगोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
13- नथमलोत बनीरोत राठौड़ :-
इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह के वंसज नथमलोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था। नत्थुसिह ; कुशलसिंह के पोते और भीमसिह के पड़ पोते थे।
नथमलोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
नत्थुसिह - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
14 - धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ :-
संग्रामसिंह चूरू के पुत्र धीरसिंह के वंशज धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। [कुशलसिंह के पाट बैठे संग्रामसिंह] संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था। बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह ने संग्रामसिंह की वि.सं.1798 में छल से गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] में हत्या करवा दी थी।
संग्रामसिंह के बाद धीरसिंह चुरू के ठाकुर बने । सात्यूं [इकलड़ी ताजीम], झारिया [दोलड़ी ताजीम] के अलावा पीथीसर, रिड़खला,जोड़ी [एक बस जोड़ी का] , रेतना [ रेतना गांव वर्तमान में भालेरी गांव में लगभग मिल गया है ] आदी इनके ठिकाने थे
धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
धीरसिंह - संग्रामसिंह - - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
15 - हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ :-
संग्रामसिंह चूरू के पुत्र हरिसिंह के वंसज हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। धीरसिंह के भाई हरिसिंह भी चुरू के ठाकुर थे। हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ों के चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास ,खंडवा, धोधलिया, थिरियासर, घांघू, हरपालसर आदी ठिकाने थे। तथा इनका एक ठिकाना जोधपुर रियासत में हरसोलाव तथा प्राचीन राज्य जयपुर में हिंगोलिया भी इनका ठिकाना था।
हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
हरिसिंह - संग्रामसिंह - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
मेघराजोत बनिरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मेघराजजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - मैकरनोत [मोहकरणोत] बनिरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र मेकर्णजी के वंसज मैकरनोत [मोहकरणोत] बनिरोत राठौड़ कहलाते हैं। मेकर्णजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। मेकर्णजीको ठिकाना गांव कानसर [जिला चूरू,राजस्थान{भारत}] मिला था।
मैकरनोत [मोहकरणोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मेकर्णजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
03 - मेदसिंघोत बनिरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र मेदजी के वंसज मेदसिंघोत बनिरोत राठौड़ कहलाते हैं। मेदजी को ठिकाना गांव सिरियासर मिला था। मेदजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे।
मेदसिंघोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मेदजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
04 - अचलदासोत बनीरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र अचलदासजी के वंशज अचल्दासोत बनिरोत राठौड़ कहलाये हैं। अचलदासजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। ठिकाना गांव घांघू इनकी जागीरी में था। घांघू के अलावा श्योदानपुर,लखाऊ,सोमासी,कोटवाद ताल, लादड़िया अदि गावों में भी अचलदासोत बनीरोत राठौड़ रहते हैं।
अचल्दासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
अचलदासजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
05- महेशदासोत बनीरोत राठौड़ -:
बणीरजी के पुत्र महेशदासजी के वंसज महेशदासोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। महेशदासजी;बाघजी के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे। महेशदासजी को ठिकाना गांव घन्टेल व कडवासर मिला था। महेशदासोत बनीरोत राठौड़ गांव घन्टेल, कडवासर व बिकसी आदि गावों में रहतें है।
महेशदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
महेशदासजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
06- रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] बनीरोत राठौड़ -:
मालदेवजी के पुत्र रामचन्द्रजी के वंसज रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। रामचन्द्रजी को ठिकाना गांव बीनासर [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। रामचन्द्रजी;बणीरजी के पोते और बाघजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव बीनासर के अलावा देराजसर, मेहरासर, खरियो, खींवणसर, दानुसर आदि थे।
रामचन्दोत [रामचन्द्रोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
रामचन्द्रजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
07- सूरसीहोत [सुरसिगोत] बनीरोत राठौड़ -:
मालदेवजी के पुत्र सूरसिंह के वंसज सूरसीहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। सूरसिंह को ठिकाना गांव चलकोई [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। सूरसिंह;बणीरजी के पोते और बाघजी के पड़ पोते थे।
सूरसीहोत [सुरसिगोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सूरसिंह - मालदेवजी - - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी -- रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
08 - जयमलोत बनीरोत राठौड़ -:
सांवलदासजी चुरू के पुत्र जयमलजी के वंशज जयमलोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। जयमलजी को ठिकाना गांव इन्द्रपुरा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
जयमलजी;मालदेवजी के पोते और बणीरजी के पड़ पोते थे।
सूरसीहोत [सुरसिगोत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
जयमलजी - सांवलदासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
09- प्रतापसिगोत बनीरोत राठौड़ -:
भीमसिह के पुत्र प्रतापसिंह के वंसज प्रतापसिगोत बनीरोत राठौड़ राठौड़ कहलाये हैं। प्रतापसिंह; बलभद्रजी के पोते और सांवल दासजी के पड़ पोते थे। प्रतापसिंह को ठिकाना गांव लोसणा [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] और तोगावास [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] मिला था।
लोसणा के अलावा इनके ठिकाना गांव तोगावास, खींवसर, कर्णपुरा,कोटवाद टीबा, एक बस गांव जोड़ी [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] का आदि थे।
प्रतापसिगोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
प्रतापसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
10 - भोजराजोत बनीरोत राठौड़ :-
भीमसिंह जी के पुत्र भोजराजजी के वंशज भोजराजोत बनीरोत कहलाते है। भोजराजजी; बलभद्रजी के पोते और सांवल दासजी के पड़ पोते थे। भोजराजजी को ठिकाना गांव दुधवा खरा और दुधवा मीठा दोनों गांव के अलावा देपालसर,और मेघसर [सभी गांव राजस्थान के जिले चूरु में] मिले थे। इन के अलावा थेलासर, जसरासर, रामपुरा, लालासर, ढाढरियो, कुणसीसर, आसुसर, हणवतपुरा
आदि थे।
भोजराजोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
भोजराजजी - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
11- चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ :-
कुशलसिंहजी चुरू के पुत्र चत्रसालजी के वंशज चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। चत्रसालजी को ठिकाना गांव देपालसर [तहसील व जिला चूरू, राजस्थान] मिला था। चत्रसालोत बनीरोत राठौड़ों का देपालसर के अलावा मेघसर, श्यामपुरा, बिनासर, ढाढर, माथौड़ी, बरड़ादास, भामासी आदि थे। चत्रसालजी ; भीमसिह के पोते और बलभद्रजी के पड़ पोते थे।
चत्रसालजी
चत्रसालोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
चत्रसालजी - कुशलसिंहजी - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी -
12- इन्द्रसिंगोत बनीरोत राठौड़ :-
कुशलसिंह चूरू के पुत्र इन्द्रसिंह के वंसज इन्द्रसिंगोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। इन्द्रसिंह;भीमसिह के पोते और बलभद्रजी के पड़ पोते थे।
इन्द्रसिंह के 6 पुत्र हुए-:
01 - जुझारसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र जुझारसिह को ठिकाना गांव सिरसला [जिला चूरू] मिला था।
02 - संग्राम सिह - संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था।
03 - भोपसिह -
04 - हनुमंतसिंह -
05 - जालम सिह -
06 - नत्थुसिह - इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था।
इन्द्रसिंगोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
13- नथमलोत बनीरोत राठौड़ :-
इन्द्रसिंह के पुत्र नत्थुसिह के वंसज नथमलोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। नत्थुसिह को ठिकाना गांव सोमसी [जिला चूरू] मिला था। नत्थुसिह ; कुशलसिंह के पोते और भीमसिह के पड़ पोते थे।
नथमलोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
नत्थुसिह - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
14 - धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ :-
संग्रामसिंह चूरू के पुत्र धीरसिंह के वंशज धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। [कुशलसिंह के पाट बैठे संग्रामसिंह] संग्रामसिह अपने पिता इन्द्रसिंह की गद्दी चूरू पर ही रहे। संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर अपने भाई जुझारसिंह से चुरू छीन लिया था। बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह ने संग्रामसिंह की वि.सं.1798 में छल से गांव सात्यूं [तहसील तारानगर, जिला चूरू, राजस्थान] में हत्या करवा दी थी।
संग्रामसिंह के बाद धीरसिंह चुरू के ठाकुर बने । सात्यूं [इकलड़ी ताजीम], झारिया [दोलड़ी ताजीम] के अलावा पीथीसर, रिड़खला,जोड़ी [एक बस जोड़ी का] , रेतना [ रेतना गांव वर्तमान में भालेरी गांव में लगभग मिल गया है ] आदी इनके ठिकाने थे
धीरसिहोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
धीरसिंह - संग्रामसिंह - - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
15 - हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ :-
संग्रामसिंह चूरू के पुत्र हरिसिंह के वंसज हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ कहलाये हैं। धीरसिंह के भाई हरिसिंह भी चुरू के ठाकुर थे। हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ों के चुरू के अलावा ठिकाना गांव बुचावास ,खंडवा, धोधलिया, थिरियासर, घांघू, हरपालसर आदी ठिकाने थे। तथा इनका एक ठिकाना जोधपुर रियासत में हरसोलाव तथा प्राचीन राज्य जयपुर में हिंगोलिया भी इनका ठिकाना था।
हरिसिहोत बनीरोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
हरिसिंह - संग्रामसिंह - इन्द्रसिंह - कुशलसिंह - भीमसिह - बलभद्रजी - सांवल दासजी - मालदेवजी - बणीरजी - बाघजी - राव कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
मेरे द्वारा लिखित बनीरोत राठौड़ों का इतिहास व इनके बारे में दी गयी जानकारी आपको कैसी लगी ? अगर आप भी अपने पुरे वंस का इतिहास उपरोक्त में जुड़वाना चाहते हैं, तो सम्पूर्ण विवरण लिख भेजिए या मेरे से संपर्क कीजिये अपनी पीढ़ी का सम्पूर्ण इतिहास सुरक्षित रहे। My mob.no.9901306658 .
ms .pepsingh @rediffmail.com
अगर आपके पास भी कोई जानकारी हो तो लिख भेजिए आपके सुझाव व स्नेह सहर्ष आमंत्रित है।
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[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 3313
।।इति।।